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चतुर्थ खण्ड : बारहवाँ अध्याय ३५५ ७ नागबला मूल चूर्ण प्रत्यह १ तोले तक घो और मधु के साथ मिलाकर सेवन । ८. काकजंघा मूल के चूर्ण का बकरी के दूध के साथ सेवन । आचार्य सुश्रुत ने चार औषधियो का प्रयोग शोषहर बतलाया है । ९. रसोन (लहसुन) १० नाग बला ११ पिप्पली १२ शिलाजीत इनका प्रयोग पृथक् पृथक् दूध के अनुपान से करने को बतलाया है।'
भेषज योग-१ दशमूलादि कषाय-दशमूल (विल्व-अरणी-सोनापाठा-पाढल-गम्भारी-शालपर्णी-पृश्निपी-कटकारी-बडी कटेरी-गोखरू)-वला-रास्ना, पुष्करमूल, देवदारु और शुण्ठी का समभाग मे लिया कपाय पार्श्व-कधं और शिर के शूल को तथा कास मे लाभप्रद । ___ क्वाथयोग-२. अश्वगन्धादि कषाय-अश्वगध-अमृता-शतावरी-नागबलापुष्करमूल-अडूसा अतीस तथा दशमूल का सम प्रमाण मे लेकर बनाये कषाय का सेवन । ३ त्रयोदशाङ्ग कपाय धनिया-पिप्पली-शुण्ठी तथा दशमूल का कपाय पार्श्वशूल, ज्वर, श्वास और पीनसादि को नष्ट करता है। (च० द०) चूर्ण योग
लवडादि चूर्ण-लवन-शीतल चीनी-खस-श्वेत चन्दन-नील कमलश्वेत जीरा-इलायची-पिप्पली-अगुरु-भृगराज-नागकेसर-शुण्ठी-कालीमिर्च-जटामासीनागर मोथा-अनन्त मूल-जायफल-वश लोचन प्रत्येक का एक एक तोला, मिश्री ८ तोले । महीन चूर्ण करके शीशी मे रखले । यह चूर्ण अग्निवर्धक, रोचक, वृष्य और त्रिदोपघ्न होता है । मात्रा ३ माशे । अनुपान बकरी के दूध से ।
कपूराद्य चूर्ण-शुद्ध कपूर, दाल चीनी, शीतल चीनी, जायफल, जावित्री प्रत्येक एक तोला, लवङ्ग चूर्ण २ तोले, जटामासी चूण ३ तोले, कालीमिर्च का चूर्ण ४ तोले, छोटी पिप्पली ५ तोले और सोठ का चूर्ण ५ तोले । इन सवा का महीन चूर्ण बनाकर सब के बराबर अर्थात् २५ तोले मिश्री मिलाकर चूर्ण को शीशी मे भर कर रख ले। यह चूर्ण हृद्य है, हस्त-पादादि दाह, कास, स्वरावसाद, जीर्ण प्रतिश्याय, श्वास-कास और क्षय मे लाभप्रद है । मात्रा ३ माशे । अनुपान अन्न-पान के साथ मिला कर सेवन ।
१. रसोनयोग, विधिवत् क्षयार्त्त क्षीरेण वा नागवलाप्रयोगम् । सेवेत वा. 'मागधिका विधान तथोपयोगं जतुनोऽश्मजस्य ।।
(सु ३ ४१)