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भिपकर्म-सिद्धि
अजा या छाग सेवन - अजा या बकरी मे क्षय रोग के दूर करने की अद्भुत क्षमता है । वास्तव में इस जीव में कदापि क्षय रोग नही होता है । ये राजयक्ष्मा रोग के लिये सदैव सक्षम ( Resistent ) रहती है । एतदर्थ ही इनके दूध, घृत, मास, भूत्र तथा मल का उपयोग क्षय रोग मे अमोघ फल वाला माना जाता है । इसीलिये लिखा है बकरे का मास, वकरी का दूध, वकरी का घी शक्कर के साथ सेवन करना, वकरियो के झुण्ड में चारपाई डालकर सोना और वकरियो के झुण्ड में ही रहना यदमा रोग के नाश के लिये अत्यन्त हितकारी है । "
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अजा पंचक घृत--वकरी की मीगी सेर, वकरी का मूत्र १ सेर, वकरी का दूध १ सेर, वकरी का दही १ सेर और वकरो का घृत १ सेर । घृत पाकविधि से मद आंच पर पका कर उसमे यवक्षार दो छटांक मिलाकर रख देना चाहिये | मात्रा - १-२ तोले प्रतिदिन | छागलाद्य घृत का भी प्रयोग होता है । भेपज - १ मास खाने वाले पशु-पक्षियो के मासरस से सिद्ध घृत मधु के साथ उपयोग |
२ दसगुने दूध मे सिद्ध किये घी का उपयोग |
३ मधुर द्रव्य, दशमूल कपाय, क्षीर, मासरस से सिद्ध घृत परम शोपहर होता है ।"
४ कबूतर, वानर, वकरा और हरिण इनके शुष्क मास का पृथक् पृथक् चूर्ण बकरी के दूध के साथ पीने से क्षय रोग नष्ट होता है । 3
५ पिप्पली, यव, कुल्थी, सोठ, दाडिम वीन, आमलकी चूर्ण इनसे युक्त पकाया हुआ वकरी के मासरस का घृत के साथ सेवन राजयक्ष्मा मे लाभप्रद होता है । इसके सेवन से पीनसादि पड़ लक्षणो से युक्त यक्ष्मा ठीक हो जाता है । ६. मास वटक उपर्युक्त विधि से संस्कृत ( औषधियुक्त ) वटक भी सेवन के लिये दिया जा सकता है ।
१ छागमासं पयश्छाग छाग सर्पि सशर्करम् । छागोपसेवा शयनं छागमध्ये तु यक्ष्मनुत् ॥ २ मासादमासस्वर से सिद्ध सर्पि प्रयोजयेत् । सक्षीद्रं पयसा सिद्ध सर्पिर्दशगुणेन वा ॥ मिहं मधुरकैर्द्रव्यैर्दशमूलकपायकैः । क्षीरमासरसोपेत घृत गोपहरं परम् ॥ ( चचि ८ )
३ पारावतकपिच्छागकुरङ्गाणां पृथक् पृथक् । मासचूर्णमजाक्षीरैः पीतं क्षयहर परम् ॥ ( भै र )