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चतुर्थ खण्ड : ग्यारहवाँ अध्याय
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रक्तपित्तकुलकण्डनरस-शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, प्रवाल भस्म, स्वर्णभस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, नागभस्म और वगभस्म १-१ तोला ले कर प्रथम पारद और गन्धक की कज्जली बनाकर उसमे शेप भस्मे मिलाकर लालचन्दन, कमल की डण्डी, मालतीपुष्प ( मुकुलित), अडूसे के पत्ते, धनिया, वारणकणा (गजपीपल), शतावरकन्द, सेमल कन्द, वट के अकुर और गिलोय इनमे से प्रत्येक के स्वरस अथवा क्वाथ से क्रमश. तीन-तीन बार भावित करके घोट कर सुखा के शीशी मे भर देवे । मात्रा-४ रती से १ माशा । अनुपान-मुलेठी और अडूसे के क्वाथ मे मधु मिला कर ।
पित्तान्तक रस-जायफल, जावित्री, जटामासी, कूठ, तालीसपत्र, सोनामाखी, लौह भस्म और अभ्रक भस्म सब सम भाग मे लेकर उसमे सबो के बराबर रजतभस्म डाल कर पानी के साथ पोस कर २-२ रत्ती की गोलियां बना कर रख छोडे । मात्रा १ से २ गोली ।
महापित्तान्तक रस-पित्तान्तक रस मे सोनामाखी के स्थान में स्वर्ण भस्म मिला देने से महापित्तान्तक रस होता है।
सुधानिधि रस-शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, स्वर्ण माक्षिक भस्म और लौह भस्म प्रत्येक समभाग मे लेकर खरल मे एकत्र कर लेवे। फिर इसमे त्रिफला क्वाथ डालकर मर्दन करके गोला बना कर भूषा मे रख कर भूधर यन्त्र' मे पका लेवे । मात्रा १-२ रती त्रिफला कषायके साथ । लौह पात्र मे दूध को गर्म करके रातमे पीना इस औपधि के प्रयोग-कालमे हितकर होता है।
चन्द्रकला रस-शुद्ध पारद १ तोला, ताम्रभस्म १ तोला, अभ्रकभस्म १ तोला, शुद्ध गन्धक २ तोला, मोती की पिष्टी २ तोला, कुटकी, गिलोय का सत्त्व, पित्तपापडा, खस, छोटो पीपल, श्वेतचन्दन और अनन्तमूल प्रत्येक का कपडछान चूर्ण १-१ तोला। प्रथम पारे-गन्धक को कज्जली करे। पीछे उसमे भस्मे तथा अन्य द्रव्यो का चूर्ण मिलाकर नागरमोथा, मीठा दाडिम (अनार), दूव, केवडा, कमल, सहदेई, शतावर और पित्तपापडा इनके यथालाभ स्वरस, अर्क या क्वाथ की १-१ भावना और मुनक्का के क्वाथ की ७ भावनायें देवे । प्रत्येक भावना मे १-१ दिन मर्दन करे और छाया मे सुखा करके दूसरी भावना दे । पीछे वशलोचन का सूक्ष्म, कडछान चूर्ण अंगुलियो पर लगाकर उनसे चने के वरावर गोलियां बना छाया मे सुखा कर रख दे।
मात्रा और अनुपान-१-२ गोलो, ठण्डा जल, उशीरासव, अशोकारिष्ट या पेडे के स्वरस से दिन मे २-३ बार दे ।