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________________ चतुथ खण्ड : नवॉ अध्याय २६५ क्रव्याद रस-शुद्ध पारद १ तोला, शुद्ध गधक २ तोला, ताम्रभस्म ३ तोला, लौहभस्म आधा तोला। प्रथम पारद और गधक को घोट कर महीन कज्जलो करे फिर उसमे ताम्रभस्म, लौह भस्म को मिश्रित कर खरल करे पश्चात् लोहकी कलछी मे लेकर पिघलावे पिघलनेपर उसकी पर्पटी बनावे । फिर एक कलईदार लौह के वर्तन मे जम्बीरीनीवू का रस ५ सेर लेकर उसमे पर्पटी को चूर्ण करके मिलावे । फिर उसको अग्निपर चढाकर पाक करे जव जम्बीरीनीवू का रस जल जाये । तो उसमे पचकोल अथवा अम्लत का कपाय छोडकर धीरे-धीरे पकावे । फिर इस औपधको कडाही में से निकाल कर खरल मे डाल देवे। फिर उसमे शद्ध टकण १६ तोले, विड लवण ८ नोले, काली मिर्च का चूर्ण ४० तोले डालकर चणकाम्लकी सात भावना देकर ४ रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर शीशीमे रख ले । मात्रा ४ रत्ती, तक्र और सेधानमक के अनुपान से भोजन के बाद । यह परम अग्निदीपक योग है। इसके सेवन काल में किसी प्रकार के पथ्य का विचार न करते हुए गुरुपाको पदार्थो-मास रवडी, मलाई, पूडी, पराठे, उडद और घृत-तैल के तले भोजन का सेवन किया जा सकता है। तीक्ष्णाग्नि या भस्मक-चिकित्सा क्रियाक्रम-तीक्ष्णाग्नि का उपचार मन्दाग्नि की चिकित्सा के ठीक विपरीत पडता है। अग्नि को प्राकृत या समावस्था मे लाने के लिये अग्नि को मंद करने का उपचार इस अवस्था मे करना पड़ता है। अस्तु, तीक्ष्ण अग्नि को सम करने के लिये दधि, दूध और पायस का अधिक प्रयोग करना चाहिये । गुरु, सान्द्र, मन्द, शीतल अन्न-पान से तीक्ष्णाग्नि को शान्त करना चाहिये। पित्त के सशमन के लिये विरेचन देना चाहिये। जो द्रव्य मधुररस, मेदोवर्द्धक ( चरवीदार ), कफवर्द्धक और देर मे पचने वाला है, वह हितकर होता है। भोजन करके दिन में सोना (दिवास्वाप ) इसमे पथ्य होता है। तीक्ष्णाग्नि का ही पर्याय भस्मक या अत्यग्नि भी है। रोगी जो कुछ खाता है वह शीघ्र पच जाता और भूख शीघ्र ही लग जाती है। अत अजीर्णावस्था मे भी भोजन वार वार खिलाते रहना चाहिये ताकि विना भोजन के यह तीक्ष्णाग्नि रोगी को उपहत न कर दे। १. तीक्ष्णमग्नि दधिक्षीरपायसै समता नयेत् । त भस्मक गुरुस्निग्धसान्द्रमन्दहिमादिभि । अन्नपाननयेच्छान्ति पित्तनैश्च विरेचन । यत्किचिन्मधर मेश श्लेष्मल गरु भोजनम् ।। सर्वं तदत्यग्निहित भुक्त्वा प्रस्वपन दिवा । महर्महरजीर्णेपि भोज्यान्यस्योपचारयेत् ॥ निरिन्धनोऽन्तरं लब्ध्वा यथैन न निपातयेत । (च)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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