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भिपकर्म-सिद्धि तक की वृद्धि प्रतिदिन या कुछ कुछ दिन ठहर कर भी की जा सकती है । इस वात का ध्यान रखना चाहिये कि वढाने में इतनी मात्रा न हो कि रोगी को अजीर्ण हो जावे । मात्रा इतनी देनी चाहिये कि कुछ कुछ बुभुक्षा वनी ही रहे। पर्पटी के घटाते समय पुन. दूब या तक्र की मात्रा घटाने की आवश्यकता नहीं रहती है, जितना रोगी पी सकता हो और पचा सकता हो पिलाते रहना चाहिये । दम, वारह सेर दूध या इतने का बना तक पो लेना एक साधारण वात है। कई बार वीस मेर या अधिक दूध पीते भी रोगी देखे गये है। यदि पर्पटी वृद्धि के साथ दूध पीने की क्षमता रोगी को अधिक न वटे तो चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं रहती है । चार सेर या पांच सेर तक दूध पर्याप्त है। ___ संसर्जन क्रम-१ पर्पटी कल्प के समाप्त हो जाने पर सहसा प्राकृत भोजन पर रोगी को नहीं लाना चाहिये । अपितु ससर्जन करते हुए प्राकृत आहार पर लाना चाहिये। जैसे प्रथम दिन लाजमण्ड, दूसरे दिन लाजपेया। तीसरे दिन पुराने गालि या साठी के २॥ तोले चावल को पेया। चौथे दिन ४ तोला चावल । पाँचवे दिन १ छटाँक चावल की पेया। भूख बढती चले तो छठे दिन उतने चावल की विलेपी। यदि अन्न का सम्यक् परिपाक होता चले तो क्रमग चावल की मात्रा वढाता चले, परन्तु एक पाव तक पहुँच जावे तो वढाना बंद कर दे। इन पथ्या को पचकोल युक्त करके लेना उत्तम रहता है। चावल का सेवन दूध या तक्र से यथाक्रम मीठा या नमकीन करके करना चाहिये । तक्र को रुचिकर वनाने के लिये भुने जीरे का चूर्ण और नमक मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसके बाद मूग, अरहर या मसूर की पतली टाल विना घी-ममाले से छौके और उसके बाद घी, मसाले युक्त छोक (जीरे की) लगाकर देना चाहिये। गाक-सब्जियो में पलाण्डु, खरबूजे, गूलर आदि देने चाहिये । पत्र शाक, मूल शाक ( जड ) तथा अन्य कई वातो का परहेज पर्पटी कल्प के मनन्तर रोगी को करना चाोि । जैसे-निम्बादि पत्र शाक, अम्ल (खटाई ), काजी, केले का फल, पत्र गाक, जड के गाक, खीरा, ककडी, तरोई, कुप्माण्ड, करेला, तरबूज आदि नही खाने चाहिये । माथ ही रात्रि-जागरण तथा स्त्रीमग का भी निपेव है।
मास-सात्म्य व्यक्तियो में मृग, तीतर, लवा, मुर्गा, छोटी मछली, वकरे को सिद्ध करके गोरवा देना चाहिये। जव खिचडी, चावल, दाल आदि रोगी को पचने लगे तो रोटी-दाल भी सेवन को देना चाहिये । पूडी, परावठे,
१. पेया विलेपीमकृतं कृतञ्च यूपं रम द्वित्रिरथैकगश्च । __ क्रमेण सेवेत विशुद्वकाय प्रधानमध्यावरशुद्धिशुद्ध ॥ ( च सि १.)