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मियम सिद्धि २-२ रत्ती की गोली बना ले 1 मात्रा एवं अनुपान ' से २० गोली तक । दिन में गरपात्र गर जल के साथ दे। गि भी जीर्ण स्वर में इसका निमंक प्रयोग निया का नन्ना है। गजन्ना के बर में इमुग उपयोग बच्चा होना है। प्रह, जेन दर, मन्त्रान्ति, दीवस्य और पाडु रोग में इसके प्रयोग में अच्छा , लम होता है। यह एक ब्ल्य गट साधन योग है । (मि. गो. मं.)
२. मकामृत योग- जनी और गुडची सुन्छ । माया मिथित मात्रा । इस योग जोग अयच्च तापक्रम (Hiperpyrexia) में एक-एक के बंतर ने देने से तापक्रम एक-दो बंध कम हो जाता है। नीती वीवतरे में रक्षा होती है। दृनग प्रयोग इस रोग का जीर्ण सर में उत्तम होता है। बीनालीन र यो विधिोगों के सेवन से मे न होन्हा हो इसके कुछ ही दिनों के उपगंग से उनमे मुगर होता है । अनृपानम्वृ या वृत एवं मित्रो * नाथ । दिन में नेवा तीन मात्रा देनी चाहिये। इस योग में मध्वज के स्थान पर अन्य पीपञ्च रसायन जैसे रस-सिन्दूर या स्वर्ग-सिन्दूर भी मिलाया जा मुत्रता है।
३. वसन्त मालनी-सुवर्ण भस्म या सोने के बरक १ तोला, मोती की पिष्टि २ तोला, युद्ध हिगल : नाला, काली मिर्च का पहछन चूर्ण ४ नाला, गृद्ध दरिग या जन्ट भस्म ८ तोला । गाय के दूध में छाछ से (२ तोले दूब ने निकाले ) एक दिन तक मर्दन करे। निर कागजी नीबू के रस की नवना नब ना दे जब तक उसनी चिनई न दूर हो जावे। नामान्यत. मक्खन की चिदनई दूर करने के लिये लगभग १०० निम्वृनो को मावश्यकता होती है। फिर
-२ पत्ती की गोली बना ले। मात्रा १-२ गोली प्रातः माय निप्पली चूर्ण • रती न्ग वृत साथ। यह योग जीर्णचर, राजयमा तथा जर दौर में लान्ड है।
४. पुटपक वियनचरान्तक लौह-प्रयन पारद एवं गंक १.१ तोला लेकर कन्जली का निर इसकी पEठी बनाये। पीछे खरल कर मर्दन करें। जिर टन चूर्ग होने पर उसमें मुर्ग भन्म : नोला, लौह भस्म २ तोला, नान एवं लौह मान लेग २ नोला, मृद्ध नोहागा, गद्ध मोना गेल, ग भन्न, बल समलंक तोला, मुताणिट, गंत मम्म मार गुक्ति मस्न प्रत्येक नोला। वो एकत्र करके सम्मान की पत्ती, चतरे की पत्ती एवं कालमय मी पत्ती के सामने एक-एक दिन तक भावित कर उन्ध को सीपी के दी कुक ने भीतर अन्युट र उसके ऊपर पट्टी कर नि म अङ्गार (निक की बग्नि) पर पक । वे लाल हो जावे तो आग ने