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________________ १८९ तृतीय खण्ड : तृतीय अध्याय मनोहर, गाना, ठडी हवा, भेद-भाव रहित निस्संकोच मिलने वाले मित्र ( जिनमे सुख पहुँचे ऐसे मित्र ), संदिग्व, मोहक वचन बोलने वाला-अल्पवयस्क पुत्र, इच्छानुमार कार्य करने वालो सुशील प्रिय स्त्री, ठंडे जल के फोहारो से युक्त घर, भ्रमण करने योग्य वाटिका, बावली, सुन्दर घाट वाला विस्तृत स्वच्छ तालाव, नदी के तट, जिसमे कमल खिले हो और किनारे-किनारे पेड लगे हो ऐसे स्थल का सेवन तथा शान्त भाव पित्त के शामक उपचार है। इनमे धी तथा दूध का सेवन और विरेचन विशेप उपयोगी है। पितस्य सपिंप: पानं स्वादुशीतैविरेचनम् । म्वादुतिक्तकपायाणि भोजनान्यौपधानि च ।। सुगन्धशीतहृद्यानां गन्धानामुपसेवनम् । कण्ठे गुणाना हाराणां मणीनामुरसा धृतिः ।। कपूरचन्दनोशीरैरनुलेपः क्षणे क्षणे। प्रदोपश्चन्द्रमा सौधं हारि गीतं हिमोऽनिल. ।। अयन्त्रणं सुखं मित्रं पुत्रः सन्दिग्धमुग्धवाक् । छन्दानुवर्त्तिनो दाराः प्रियाः शीलविभूपिताः ॥ शीताम्बुधारागर्भाणि गृहाण्युद्यानदीर्घिका । सुतीयविपुलस्वच्छसलिलाशयसैकते ॥ साम्भोजजलतीरान्ते कायमाने द्रमाकुले । सौम्या भावाः पयः सर्पिविरेकश्च विशेषतः ।। कफस्कंध __ कफ के गुण-गुरु, शीत-मृदु-स्निग्ध-मधुर और स्थिर गुण वाला श्लेष्मा होता है। जो लघु, उष्ण, रुक्ष, कटु, तिक्त, कपाय, चल और विगद गुण वाले द्रव्यो के उपयोग से शान्त होता है। गुरु-शीत-मृदु-स्निध-मधुर-स्थिर-पिच्छिलाः । श्लेष्मणः प्रशमं यान्ति विपरीतगुणैर्गुणाः॥ कफ प्रकोप के कारण-गुरु एव मधुर द्रव्य, दूध एव उससे बने पदार्थ जैसे--खोवा, रवडी, मलाई आदि, गन्नेका रस तथा उसके बने पदार्थ जैसे--- गड, चीनी-मिश्री आदि के बने पदार्थ, द्रवद्रव्य, दधि, दिन का सोना, पूवा-पूडी प्रभति पकवानो का सेवन अर्थात् स्निग्ध एव सतर्पणात्मक वस्तुओ का सेवन तुपार ( पालाहिम ) के गिरने के समय, दिन एवं रात के प्रथम भाग मे, भोजन के तत्काल वाद तथा वसन्त ऋतु कफ के प्रकोप मे हेतु बनते है । चिकित्सा में कारणो का परिहार आवश्यक होता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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