________________
तृतीय खण्ड . द्वितीय अध्याय
को पटता, पढाता या प्रयोग में लाता है, उसके जीवन काल में ससार मै उसका या फैलता है और मरने के बाद वह स्वर्ग को प्राप्त करता है।"
नन्दि पुराण में यहाँ तक लिखा है कि वैद्य यदि अपनी ओषधि-योजना से एक रोगी को भी नीरोग कर दे तो वह देहावसान के अनन्तर सात पीढियो के सहित ब्रह्म लोक में निवास करता है। ___जो मूर्द रोगी चिकित्सा करा के उसके बदले मे चिकित्सक को कुछ देता नही है वह जो भी पुण्य करता है उसका सम्पूर्ण फल उस चिकित्सक को प्राप्त होता है।
सक्षेप में रोग का विधिपूर्वक निदान करके चिकित्सा करते हुए चिकित्सक सो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (पुरुषार्थ चतुष्टय ) की प्राप्ति होती है ।
कचिद्धर्म कचिन्मैत्री कचिदर्थः क्वचिद्यशः। कर्माभ्यास. क्वचिञ्चापि चिकित्सानास्ति निष्फला।
नहि जीवितदानाद्धि दानमन्यद् विशिष्यते ।। चिकित्सा की महिमा-कुछ लोग ऐसा कहते है कि कई जितेन्द्रिय भी रोगी देखे जाते है। द्रव्य एवं परिचारक से सम्पन्न तथा वृद्ध वैद्यो के अनुसार चलने वाले रोगमुक्त होते हुये और बहुत बार मरते हुए दिखलाई पडते हैं। इसके विपरीत यथेच्छ आचरण करने वाले व्यक्ति भी रोगमुक्त होते और मरते दीख पडते हैं इसलिये हिताहित-सेवन तथा अचिकित्सा दोनो ही ठीक है। इस शका को दूर करते हुए आत्रेय का वचन है कि इस प्रकार की नास्तिक्यबुद्धि का परित्याग करना चाहिये, चिकित्सा तथा अचिकित्सा दोनो बराबर कदापि नही हो सकती हैं । जहाँ पर विना भिपक्, द्रव्य, एव उपस्थाता के रोगी अच्छा हमा अर्थात् अचिकित्सा से स्वयमेव काल से ठीक हुआ है, वहां पर चिकित्सा हुई होती तो रोग मे शीघ्र ही लाभ हुआ होता । चिकित्मा-साध्य रोहिणी आदि रोगो मे विना चिकित्सा के शान्ति नहीं मिलती। अस्तु चिकित्सा के समान अचिकित्सा नही हो सकती। रोगरूपी पक में फंसे हुए मानव के लिये चिकित्मा या आयुर्वेद शास्त्र एक अवलम्बन (सहारा) होता है। मरने वाले मभी असाध्य रोगियो को ओपघि से जीवन नही दिया जा सकता है। तथापि रोग को दूर करने के लिये चिकित्सा की उपादेयता सिद्ध है। चिकित्सा शास्त्र के द्वारा अकाल मृत्यु हटाई जा सकती है। अस्तु रोगो मे चिकित्सा की रोग नाशकता के बारे में सशय नही करना चाहिये। ___ अकाल मृत्युकारक ज्वर आदि जो मृत्युपाश है, उनको नष्ट करने के लिये यह चिकित्सा शास्त्र दृढ हैं। उत्पन्न हुए रोगो से भयभीत मनुष्यो के लिये पूनरहित यह चिकित्सा शास्त्र रक्षा-सूत्र है ।