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द्वितीय खण्ड : द्वितीय अध्याय
१५७ भूज की कोई भी हानि नही होती है । उसी प्रकार केवल शिरोगत दोपो को नस्य निकाल लेता है । वहाँ की धातुओ को कोई भी हानि नही होती है।
योगायोग तथा सम्यक् योग के लक्षण.--नस्य के सम्यक् योग से सिर मे लघुता, सुखपूर्वक निद्रा का आना, रोगो को शान्ति, इन्द्रियो की निर्मलता
और मन की प्रसन्नता प्रभृति लक्षण दिखलाई पडते है। ___अतियोग से कफ का गिरना, सिर मे भारीपन इन्द्रियो का विभ्रम आदि पाया जाता है। यदि अतिस्निग्ध नस्य के कारण ये लक्षण उत्पन्न हो तो उनमे , रुक्षण करना चाहिए।
अयोग मे वायु की विपरीत गति, इन्द्रियो की स्क्षता, और रोग का शान्त होना पाया जाता है। इसमे पुन नस्य देना चाहिये ।।
गिरोविरेचन की औपधियां-अपामार्ग के बीज, छोटी पीपल, मरिच, वायविडङ्ग, शिग्रुवीज, सर्पप, तुम्बुरु ( नेपाली धनिया ), जीरा, अजवायन, अजमोदा पोलु, इलायची, रेणुका बीज, वडी इलायची, तुलसी, वन तुलसी, श्वेता, कुठेरक फणिज्झक, शिरीपवीज, हरिद्रा, सेवा नमक, काला नमक, ज्योतिष्मतो, शुठी। (चर-सूत्र २) । इनके अलावे कटुतुम्बी, कडवी तोरई, प्याज, वन्दाक, कायफर का चूर्ण भी तीन शिरोरेचक है।