________________
द्वितीय खण्ड : द्वितीय अध्याय
१३३
को निकाल कर उसमे भी शिरा जाल को पृथक कर, गंधहीन करके और लाल रंग से रंग करके शुद्ध, करके रख लेना चाहिए । यदि जानवरो के मूत्राशय उपलब्ध न हो तो चमडे के टुकडे प्लव नाम के पक्षि के गले या कपडे का इस्तेमाल वस्ति बनाने के लिए करें । इमो वस्ति के द्वारा बने थैले के कारण हो, पूरे यन्त्र का नाम वस्ति यन्त्र पड गया ।
(२) नेत्र ( नलिका) : - वस्ति को नलिका सुवर्ण, रजत, वग, ताम्र, पित्तल, कास्य, लकडी, लोह, अस्थि या हाथी के दात अथवा छिद्रयुक्त सीग के बनाए जाते है । (३) छिद्र :- नेत्र के द्वार को छिद्र कहते है । इस छिद्र का परिमाण आयु के अनुसार रखने की विधि बतलाई गई है। काम करते समय वर्ति को निकाल ले पुन कार्य के समाप्त हो जाने पर उसके छिद्रो को रुई को वत्ति से बन्द करके रखे ।
(४) कर्णिका : हुक्के को नली मे जेसे बीच मे उभार मिलते है, उसो प्रकार के उभार नलिका में भी वोच-बीच में बनाये जाते हैं । इन उभारो को कणिका कहते हैं । इनमे दो कणिकाएँ, जिनमे एक तो वस्ति वाले भाग के पास मे वस्ति को उसमे लगा कर सूत्रो मे स्थिरीकरण के लिए बनाई जाती है और दूरी कणिका वस्ति के अनके समीप चतुर्थाश पर पहले की अपेक्षा छोटे परिमाण की बनाई जाती है जिससे वस्ति का प्रवेश गुदा आदि में करके वहाँ तक पहुँचा कर उसका स्थिरीकरण किया जा सके । इन उभारो के स्थान पर नलिका छिद्र भी अपेक्षाकृत अधिक चौडा हो जाता है जिससे औषधि द्रव के प्रवेश मे उसका वेग शिथिल हो सके ।
नेत्र की लम्बाई : - नेत्र की लम्बाई आयु के अनुसार अर्थात् ६-८० और १२ वर्ष की आयु में क्रमश ६-१२-१८ अगुलो की होनी चाहिए । नली की मोटाई मूल की ओर अधिक, परन्तु अग्र को ओर क्रमश कम होनी चाहिए । मूल की तरफ नलिका अगुष्ठ परिणाह की ओर क्रमश अग्र की ओर कनिष्ठिका ( छोटो अगुली ) के परिमाण की होनी चाहिए । नलिका सीधी होनी चाहिए । उसकी समता गो-पुच्छ मे दी जाती हैं जैसे गाय का पुच्छ ऊपर में मोटा क्रमश नीचे की ओर पतला होता है उसी के सदृश वस्ति का नेत्र भी होना चाहिए । नलिका खुरदरी न हो चिकनी हो और उसका - मुख गुटिका मुख बडी गोलो जैसे गोल होना चाहिए ।
नेत्र के दोप -- छोटापन, पतला पन, मोटापन, जीर्णता, नली का वस्ति भाग के साथ ठीक बन्धन का न होना, छिद्र का वोच मे न हो कर किनारे पर होना, टेढा होना, ये सात दोप नेत्र के माने गए है ।