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भिपकर्म-सिद्धि जैमा कि नीचे के कोटक में पाट किया गया है :कर्म | आतिकी वैगिकी मानिकी
लैनिकी जवन्य ४ जघन्य १ प्रस्थाहदय, पार्च, मर्धा, न्द्रिय वमन पित्तान्त मध्य ६ मध्य १: प्रस्थ और त्रोतो की शुद्धि और प्रवर ८ प्रवर प्रस्थ । गरीर की उपना ।
नोतसो को विद्धि सन्द्रियों जघन्य १० जघन्य २ प्राय
ी प्रमन्नता, हल्कापन विरेचन कफान्त । मध्य २० । मध्य प्रस्थ
इन्द्रियो की प्रसन्नता, प्रवर ३० प्रवर ४ प्रस्य
| स्वास्थ्य अनुभव करना । नोट-वमन, विरेचन तथा शोणित मोक्षण कर्म में प्रस्थका
___ १३॥ पल का होता है । उक्ति भी मिलती है वमने च विरेके च तथा शोणित मोक्षणे । सार्द्धत्रयोदशपलं प्रथमाहुर्मनोपिणः । योगायोग के लक्षण :
सम्यक् योग--ऊपर के कोष्टक में लैङ्गिको शुद्धि के कोष्ट में कथित लक्षण वमन लयवा विरेचन के ठीक प्रयोग होने पर मिलते हैं।
दुश्चर्दित के लक्षण (Low dosage of Emetics):--
हृदय और बोतसो की विगुद्धि नहीं हो पाती, शरीर मे गुन्ता आ जाती है स्फोट, कोप्ठ, गीत-पिन आदि गरीर पर निकलने लगते है। गरीर मे खुजली होने लगती है।
दुर्विरिक्त के लक्षण (Low dosage of Purgation):--
त्रिदोपो का कुपित होना, अग्निमान्छ, गौरव (भारीपन), प्रतिश्याय, तन्द्रा, वमन, अरुचि तथा वायु का अनुलोमन न होना प्रभृति चिह्न मिलते है ।
अतिवमित के लक्षण (Over dosage of Vomiting):
तपा, मोह, मूर्छा, वायुकोप, निद्रा, वल को हानि । इस अवस्था मे स्तम्भन को देकर वमन बंद कराना चाहिए। पित्तघ्न स्वादु एव शीत वीर्यओपधियो का प्रयोग करना चाहिए।
अतिविरिक्त के लक्षण (Over dosage of Purgatives):--
कफ, रक्त, पित्त, क्षय, वायु के रोग, संगमर्द, अगो की सुप्ति (सुन्नता), थकावट, वेदना, कम्प, निद्रा की अधिकता, बेहोशी, उन्माद, गुदभ्रश और हिवका आदि लक्षण मिलते है ।