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द्वितीय खण्ड : प्रथम अध्याय
१०६ हो सकता है जैसे-विद्युत प्रकाश में स्वेदन अल्ट्रा वायलेट, इन्फ्रारेड का सेवन यादि । शेप अन्य विविध प्रकार के स्वेदन अग्निस्वेद के उदाहरण है।
इनी प्रकार रूक्ष और स्निग्ध भेद से भी स्वेदन के दो प्रकार हो जाते है। जमे वालुका, वेली, वस्त्र, मेधा नमक, और पत्थर आदि को गर्म करके सेकना स ( Diy fomentation ) स्वेदन तथा खोवे ( किलाट ), मातादिलो की पोटली बनाकर उससे सेंकना स्निग्ध स्वेद (Wet-fomentation ) कहा जाता है। इमो वर्ग मे तेल या घृत को मालिश करके सेकना तथा उष्ण जल आदि से सेकना भी आ जाता है।
विधि भेद से पुन स्वेदन के चार वर्ग हो जाते है-ताप स्वेद-( Dry fonmentation ), ऊष्म स्वेद (Vapour fomentation ), उपनाह स्वेद ( Poultice ) तथा द्रव स्वेद (Wet fomentation )। आज कल की चिकित्सा में कई प्रकार के उष्ण-स्नान (Hot-rarm bath) तया वाप्प स्नान (Vapour bath) प्रचलित है । उनका उद्देश्य प्राचीनोक्त स्वेदन के अतिरिक्त और कुछ नही है। ये स्नान स्थानिक या मार्वदैहिक तथा सीपध अथवा निरोपध हो सकते है। इन स्नानो के द्वारा निम्नलिखित लाभ होते है। -
(१) त्वचा को मृदु करते हुए मेद के त्रावो को द्रवीभूत कर देते है फरत कई प्रकार के त्वचा के रोगो मे व्यवहृत होते है । ( २ ) स्थानिक रक्ताभिसरण को बढा कर कोष्ठगत् रक्ताभिसरण को कम कर देते है जिससे आन्त्रगत, पिनाशयगत तथा वृक्गत शूल प्रभृति शूल कम हो जाते है । ( ३ ) धातुओ को शिथिल कर देते है जिससे पेशीगत आकुचन दूर हो जाते है, फलत तीन उदर शूल, प्रसेक सकोच, आन्त्र वृद्धि, शैशवीय आक्षेप तथा स्वर यन्त्र का आकुचन प्रभृति आकृवन जन्य पीडाओ के उपचार मे व्यवहृत होतेहै । ( ४ ) स्वेद ग्रथियो ( Suderiferrous glands ) से स्रावो को वढा देते है जिससे वृक्क रोगो मे लाभ होता है और मूत्र-विपमयता मे भी आराम मिलता है। ___इन स्नानो के पूर्व और पश्चात् रोगी की तत्परता से रक्षा करनी चाहिए। स्नान के पश्चात् उसके शरीर को सुखा कर गर्म विस्तर पर लेटा देना चाहिए । उष्ण पेय-चाय-दूध आदि देना चाहिए। आधुनिक युग मे कई प्रकार के स्नान प्रचलित है । जैसे
(१) दुष्ण स्नान ( Tepid bath )-किंचित् उष्ण जल से ८५° से