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श्री पार्श्वनाथाय नम
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भगवान पार्श्वनाथ
पुरोहित विश्वभूति ! " जरा मौतकी लघु बहिन, यामें संशै नाहि । तौभी सुहित न चिंत, बड़ी भूल जगमांहिं॥"
विश्वभूति-प्रिये, इस असार संसारमें भ्रमते अनादिकाल होगया' विषयतृष्णाको बुझानेके लिये अनेकानेक प्रयत्न किये! पांचों इन्द्रियोंके विषयसुखमें तल्लीन रहकर युगसे बिता दिये ! स्वर्गों के सुख भी भोगे, चक्रवर्तियोंकी अपूर्व सम्पत्तिका भी उपभोग किया! परन्तु इस विषयतृष्णाकी तृप्ति नहीं हुई ! सचे सुखका आस्वाद नहीं मिला। इस भव-वनमे भटकते हुए सौभाग्यसे यह मनुष्यजन्म और उत्तम कुल मिल गया; सो भी यूंही इन्ही विषयवासनाओको भोगते हुए-भोगोपभोगकी मरीचिकामे पड़े हुये विता दिया ! आज यह देख प्रिये ! यह सफेद बाल मानो मुझे सचेत करनेको ही नजर आगया है !
अनूदरि-वाह ! एक सफेद बालको देखकर प्रिय, क्यो इतने यभीत होते हो? माना कि ससार असार है-उसमें कुछ भी सार ही! लेकिन प्यारे! इसी संसारमे रहकर ही आप अपने उद्देश्यको