SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३] दोनो संप्रदायके ब्रन्थोंमें भगवान्के पांचोंकल्याणकोंको विशाखा नक्षत्र में घटित हुआ बतलाया गया है। जन्मतिथि भी दि. शास्त्रमें वे के पौषकृष्ण १ के स्थानपर पोपकृष्ण एकादशी है । हां, दीक्षातिथि दोनों संप्रदायोमें एक मानी गई है । पालकीका नाम कल्पसूत्रमें 'विशाला' और दि० शास्त्र में 'दिमला' है । दीक्षा समय दि० शास्त्र भगवानको दिगंबर मुनि हुआ बतलाते है, परन्तु श्वे. शास्त्र उन्हें देवदूष्य वस्त्र धारण करते हुये लिखते हैं; यद्यपि उनका यह कथन नितार है, क्योकि पहले तो उन्हींके शास्त्रोमें साधुकी सर्वोच्चदशा नग्न वताई है और उसका अभ्यास तीर्थंकरोंने किया, ऐसा लिखा है । तिसपर इसके अतिरिक्त बौद्ध और वैदिक मतोंके ग्रंथोंसे भी भगवान महावीरसे पहले के जैन साधुओका भेष नग्न ही प्रमाणित होता है। वेदिककालके जैन यति अथवा ज्येष्ठ व्रात्य नग्न होते थे, यह हम किचित् ऊपर देख ही चुके हैं । अस्तु; वे के इस कथनपर सहसा विश्वास नहीं किया जासक्ता । अगाडी दि. शास्त्र भगवान् की छद्मस्थावस्था ४ माप्त और केवलज्ञान प्राप्तिकी तिथि चैत्ररूण चतुर्दशी कहते हैं । श्वे. यह अवधि ८३ दिनकी और उक्त तिथि चत्र कृष्ण चतुर्थी बतलाते हैं । दिगंबर शास्त्रमें गण और गणधर दश बताये गए हैं, जैसे भावदेवमूरिने भी बताये हैं, परन्तु कल्पसूत्र में दे ८ ही हैं। मुनियोंकी संख्या दिगम्बर शास्त्रोंमें भी १६००० बताई गई है, परन्तु आर्यिकाओंकी संख्या श्वे०से विपरीत उनमें ३६००० है । श्रावक भी एकलाख और । श्राविका तीनलाख बताये गए है । सम्मेदशिखरसे मुक्त हुए दि -भगवान महावीरं और म० बुद्ध पृ० ६४-६५ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy