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[६९ (६) १००० विक्रियाधारी, (७) ७५० मनःपर्ययज्ञानी, (८) ६०० वादी। ___हरिवंशपुराणमें इनकी संख्या निम्न प्रकार लिखी है और चादिराजमूरिने लिखी नहीं है:
(१) १० गणधर, (२) ३५० वादी, (३) १०९०. शिक्षक, ४ १४ ० ० अवधिज्ञानी, (५) १००० केवलज्ञानी. (६) १००० विक्रियाधारी, (७) ७५० विपुलमती (८) ६०० वादी । हरिवशपुगणमें आर्यिका ३८०००, श्रावक एक लाख और तीन लाख श्राविकायें लिखी हैं। उत्तरपुराण, सकलकीर्तिकत पुराण, चन्द्रकीर्तिकृत चरित और भूधरदासनी प्रणीत पुराणमें श्रावक और श्राविकाओं की संख्या हरिवंशपुराणके समान लिखी हैं; परन्तु आर्यिकाओं की ख्या भूघरदासजीके अतिरिक्त सबने ३६००० लिखी है। भूधरदासनीने २६००० वतलाई है। उत्तरपुराण, सकलकीर्ति, चन्द्रकीर्ति और भूवरदामनीके ग्रन्थोंमें भगवानको मोक्ष लाभ प्रतिमायोगले प्रातःकाल हुआ लिखा है; किन्तु हरिवंशपुराणमें कायोत्सर्गरूपसे सायंकालको हआ बतलाया है। भूघरदासनी ३६ मुनीश्वरों के साथ मोक्ष गये बतलाते हैं; जिनसेनाचार्य इनकी संख्या ९३६ लिखते हैं । हरिवंशपुराणमें भगवानके कुल ६०२०० शिष्योको मोक्ष गया लिखा है और उनके बाद तीन केवलज्ञानियों का होना बतलाया है। इस तरहपर सक्षेपमें दिगम्बर ग्रन्थोंका परस्पर भेद निर्दिष्ट किया गया है । यह विशेष नहीं है । साधारण है और इसलिए कुछ भी नहीं है । श्वेतांबर, संप्रदायके ग्रंथोंके - समान वह नहीं है । श्वेतांबा समदायके मथों में परस्पर एक दूप