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भगवान पार्श्वनाथ ।
उनके चरित्रके एक रशिम-प्रकाशको पाकर उनके पवित्र चरित्रको 'पूर्ण करते हुए आइए पाठकगण उनके चरणोंमें नतमस्तक होलें: क्योंकिः
"नरनारक आदिक जोनि विपैं,
विषयातुर होय तहां उर. है । नहिं पावत है मुख रंच तऊ,
__ परपंच प्रपंचनिमैं मुरझै है ॥ जिन पारश सों हित प्रीति विना,
चित चिंतित आश कहां मुरझै है। जिय देखत क्यों न विचारि हिये,
कहुं ओसकी बूंद सों प्यास बुझे है ॥
इतिशम्-ॐ शान्तिः !
आश्विन शुग २ स. १९८३ मगलवासने परिपूर्णम् ।
ता. ७-१२-१९२६ ।
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