________________
.४०४] ___ भगवान पार्श्वनाथ । अद्वितीय कीर्तिसे गूंज रहीं हैं ? इसलिये कि उनमें अनन्त प्रेम था-अनन्त वीर्य था-अनन्त ज्ञान था ! सब जीवोंके कल्याणका द्वार उनके भव्य दर्शनमें मिलनाता है । विजयलक्ष्मी उनके उपासकोंके सम्मुख आ उपस्थित होती है। क्योंकि उनका दिव्य चरित्र साम्यभाव और उत्कट विश्वप्रेम का पाठ पढ़ाता है। उनके उपासक परम अहिंसाव्रतको पालते हैं-दयाके दर्शन उनके दैनिक जीवनसे होते हैं। और दया सत्यकी सहोदरा है । फिर भला कहिये कि दयाप्रेमी प्रमू पार्श्वके उपासक सत्यके हृदयमें निवास करते हुये क्यों नहीं विजय-लाभ करेंगे ? उनके सर्व कार्य अवश्य ही सिद्धिको प्राप्त होगे। प्रभू पार्श्वकी भक्ति-श्री तीर्थकर भगवानकी उपासना अवश्य ही मनुष्य जीवनको सुफल बनानेवाली है। इसीलिए कवि कहते हैं कि:
"जनरंजन अघभंजन प्रभुपद, कंजन करत रमा नित केल । चिन्तामन कल्पद्रुम पारस, वसत जहां सुर चित्रावेल ॥ सो पद सागि मूढ़ निशिवासर, मुखहित करत कृपा अनमेल। नीति निपुन यों कहैं ताहिबर, 'वालू पेलि निकालै तेल' ॥"
सचमुच प्रभू पार्श्वके पाद-पद्मोंका सहवास छोड़कर अन्यत्र सिर मारनेमें कुछ फल हाथ आनेका नहीं है। भगवान पार्श्वनाथका ' पवित्र जीवन हमें स्वाधीन हो सच्चे सुखी बननेका उपदेश देता है। परतंत्रताकी पराधीनतासे विलग रहना वह सिखाता है। जीवित प्राणीमें अनन्त शक्ति है-आस्तिकोंको यह वात उनके दिव्य संदेससे हृदयंगम होजाती है। वह जान जाते हैं कि कीड़ी-मकोड़ी,