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भगवान पार्श्वनाथ |
अनुयायी समझौते की फिकर में थे ।... बौद्धोंके पासादिक और सामग्राम सूत्रोंसे उस समयका भी पता चलता है जबकि महावीरजीकी सुक्ति के साथ ही उनके शिष्य दो भागोमें विभक्त हो गये थे । पार्श्वके अनुयायियों को इस समझौतेसे नये सबके सिद्धान्तवाद (Philosophy) को पाने का लाभ हुआ था ।" "
इस समस्त कथनमें इन बातोंको प्रगट किया गया है कि:(१) भगवान पार्श्वनाथ यद्यपि महावीरस्वामीके पूर्वागामी तीर्थंकर थे, परन्तु उनके निक्ट वह सिद्धांतवाद उपस्थित न था जो महावीरस्वामीके निकट था ।
(२) महावीर स्वामीने पार्श्वनाथजी के संघका आश्रय लिया था | उपरांत उससे सम्बन्ध विच्छेद करके वे मक्ख लिगोशालके साथ रहे थे; जिससे नग्नदशा आदि नियम ग्रहण करके उनने अपना नवीन संघ स्थापित किया था ।
(३) महावीरजी के समय मे भी निर्ग्रन्थ सघ ष्टथक२ मौजूद थे; जिनमें 'चतुर्यामव्रत' अथवा 'चतुर्यामसंवर' समान थे ।
(४) 'सामन्न फलमुत्त' में चतुर्यामसंवरमे जो बातें गिनाई गई. हैं वह ठीक नहीं है । वह न महावीरस्वामीके धर्मोपदेशमें मिलती हैं और न पार्श्वनाथजीके । तथापि चातुर्यामसंवर नियम महावीरका बतलाना गलत है । वह केवल चातुर्याम रूपमें पार्श्वनाथजी से लागू है, जिसका भाव पार्श्वनाथजीके चातुर्यामव्रत, जिसका उल्लेख श्वेतांबरोंके 'उत्तराध्ययन सूत्र में है, उससे है। महावीरखामीने इन व्रतोंमें अंतिम अर्थात् पांचवा व्रत स्वयं बढ़ा दिया है और उनका २ - पूर्वपुस्तक पृ० ३८३ ॥