________________
[३ ] दिया। बृहदूगिरीने ब्राह्मण गौरव पानेकी अभिलाषा की, सो इंद्रने 'बृहदगिरि' समनके बल उसे वह गौरव दिया । और रयोवनने पशुधन चाहा, इंद्रने 'स्योवनीय' समनके द्वारा उसे पशुधन भेंट किया। इस ग्रन्थके टीकाकार इन यतियोकों वह व्यक्ति बतलाते हैं जो वेदविरुद्ध नियमोंका पालन करते थे, यज्ञोंके विरोधी थे और कर्मकाण्डके निषेधक थे । इनमें ऐसे ब्राह्मण थे जो 'ज्योतिष्तोमा आदि यज्ञ न करके अन्य प्रकार जीवन यापन करते थे। इन उल्लेखोंमें (१) यतियोंको यज्ञ विरोधी सन्यासी लिखा है, जो यज्ञ मंत्रोंका भी उच्चारण नहीं करते थे; (२) वैदिक आर्यों में उनको प्रसिद्धि नहीं थी और वे इन्द्र एवं इन्द्रभक्तों द्वारा प्रताड़ित हुये थे; (३) किन्तु जिस उद्देश्यके लिए यह यती खड़े हुये थे, वह एक समय इतना प्रबल होगया कि इन्द्रपूजा और सोमयज्ञ बन्द होगये ।* स्वयं इंद्रपर हत्याओंके पातक लगाए गए । (४) इस झगड़ेके अन्तमें यज्ञवादकी विजय हुई और इन्द्रपूना एवं यज्ञोंको पुनरावृत्ति हुई । (६) यह यती जैन यतियों के समान हैं; क्योंकि ___.. 'मत्स्यपुराण' के निम्न वर्णनसे भी यह बात प्रमाणित होती है कि एक समय अवश्य ही जैनधर्मकी इतनी प्रबलता होगई थी कि इन्द्रका मान और विनय जाता रहा था -
__“ इन्द्र राज्य विहीन बृहस्पतिके पास अपनी फरियाद लेकर पहुचा। बृहस्पतिने गृहशाति और पौष्टिक कर्मद्वारा इन्द्रको बलिष्ठ बनाया । और जनैधर्मके आश्रयसे उसने रजिपुत्रोंको, (जिनने इन्द्रको राज्यच्युत किया था) मोहित किया ! बृहस्पतिने खूब ही रजिपुत्रोको वेदत्रय भ्रष्ट किया । इसपर इन्द्रने उन चेद बाह्य और हेतुवादी रजिपुत्रोंको वज़से नष्ट करदिया ।" (मत्स्य पु० आनन्दाश्रम० अ० २४ श्लो. २८-४८ ।