SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा करकण्डु। [३५९ नामकी उसकी स्त्री थी। अपनी स्त्रीको सोमशर्मा नामक एक विप्रमें अनुरक्त जानकर उसने दीक्षा ले ली और आयु पूर्ण करके वह स्वर्गधाम पहुचा । वहींसे चयकर वह चंपापुरका राजा दत्तिवाहन हुआ ! इधर वह सोमशर्मा ब्राह्मण मरकर कलिग देशमें नर्मदाति__लक हाथी हुआ। ( उप्पण्णउ कुभिकलिंग देस ) यही हाथा रानी पद्मावतीको लेभागा था । प्राणियोंका मोह और वैर जन्मजन्मान्तरमें भी नही जाता है। इसलिये वृथा ही राग, द्वेषके वशीभूत होकर किसीका अहित करना बुरा है । खैर ! अगाड़ी शेष जो व्यभिचारिणी नागदत्ता रही थी वह भी मरगई और बहुत कालतक भ्रमण करके ताम्रलिप्ति नगरीमें वसुदत्त वणिककी स्त्री हुई । (एत्थत्थि मरहि पुरि तामलित्ति, जोवंतणु सुखइ लहइतित्ति। वसुमित्त तर्हि वणि अत्थि...) इसके दो पुत्रियां धनवती और धनश्री नामकी हुई थीं। धनवतीका विवाह णालंदा नगरके सेठ धनदत्त और सेठानी धनमित्राके पुत्र धनपालके साथ हुआ था । (णालंदणयरि धणुदत्तुवणि-धणमित्तागेहिणि तहो सुयऊ .) दूसरी धनश्रीको कौशाम्बीके वैश्य वसुपाल और वसुमतीके पुत्र वसुमित्रने व्याही थी । (कउसंविणयरि वसुपाल सेवि-इत्यादि) वसुमित्र जैन धर्मावलम्बी था । इससे धनश्री भी उनके संसर्गसे जैनी होगई। एक दफे उसकी माता नागदत्ता भी वहां आई । धनश्रीने श्री मुनिवरके पास लिवानाकर अपनी माताको अणुव्रत लिया दिये, किन्तु अपनी दूसरी पुत्रीके समागममें पहुंचकर उसने उन व्रतोंको छोड़ दिया। उसने तीनवार यह व्रत लिये और तीनों ही वार छोड़ दिये (जहतेहंवउ भमाउ एक्कवार, तहतिणिवार भग्गउ मुत्तार)
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy