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भगवान् पार्श्वनाथ |
हो गया । हाथी रोषमें भरा हुआ जाकर एक तालाब में घुम पड़ा और यही मालूम हुआ कि रानी पद्मावतीको वह पानी में डुबो ही देगा, किन्तु यहां ठीक मौकेपर रानीका पुण्य सहायक होगया । वनदेवीने प्रकट होकर रानीको उस तालाबके निकटवाले सुरम्य उपवनके एक वृक्षके तले बैठा दिया ! यह उपवन दंतिपुर नगर के निकट था, यह भी 'करकंडुचरिय' में लिखा है, यथा:"ता दिउ ऊववणु खरुख्कु । मयरहियउणी रणायमुखु ॥ तर्हि रुखको तले वीसमइ जाम। णंदणुवणु फुल्लिउ फलिङ ताम ॥ ता दंतीपुर के विविचित्त । भड मालिहि अग्गह कहिय वत्त ॥
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तें तरु तलित ताल दिट्ठी दिव्बवाल । णंवणसिरिसोहई गुणवमाल|| पुणु चिंतइ उ सामण्ण एह । रुवेण अउछी दिव्वदेह ||"
इनसे यह भी प्रकट होता है कि उस उपवन में बैठी हुई पद्मावतीको वहाके भट नामक मालीने देखा था । वह उसको देखकर आश्चर्यमें पड़ गया था । रानीकी दिव्य देहको देखते हुये वह सहसा यही न निश्चय कर सका कि वह यक्षी है अथवा कोई राजपुत्री है । आखिर वह माली उसके निकट आकर सब हाल पूछने लगा और सब हाल सुनकर उसने रानीको सान्तवना दी । उपरांत वह रानीको अपने घर लिवा लेगया । उसने दु.खीजनों को आश्रय देना अपना कर्तव्य समझा और उसने रानीको बडी होशि- यारीसे अपने यहां रहने दिया ! उसका यह सुवर्ण कृत्य भारतीय सभ्यताके आदर्शका एक नमूना था । दुःखी और अंबला जनकी - सहायता करना सचमुच एक खास धर्म है, किन्तु आज के भारतमें