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मक्खलिगोशाल, मौद्गलायन प्रभृति शेष शिष्य । [ ३३३ जायगा ! इसके अगाडी हम श्वेतांबरियोंके पार्श्वचरितमें आये हुये किन्हीं प्रख्यात् व्यक्तियोंका विवरण देदेना उचित समझते हैं, जब कि हमारा उद्देश्य भगवानके शासनका यथासंभव पूर्ण परिचय उपस्थित कर देना है । अस्तु;
(१९) सागरदत्तु अगर खुत्युदत्तु वेष्टी !* 'स्त्री नदीवत् स्वभावेन चपला नीचगामिनी । उन्दृत्ता च जड़ात्मासौ पक्षद्वयविनाशिनी ॥"
भावदेवसूरिः। पुंड्रदेशमें ताम्रलिप्ति नगर प्रख्यात् था ! यहांपर भगवान पार्श्वनाथजीके समयमें एक सागरदत्त नामका श्रेष्टी पुत्र रहता था। सागरदत्त भरपूर यौवनमें पैर रख चुका था, पर तो भी वह कामशरसे वींधा नहीं गया था । उसे स्वभावसे ही स्त्रियों की सूरतसे वृणा थी, वह उनका नाम सुनते ही बहक उठता था । कामदेवसे उसने इसतरह प्रत्यक्ष ही विरोध ठान लिया था, किन्तु वह इस विरोधमें सफल न हुआ ! कामदेवके शरोंने उसे व्यथित अवश्य किया, पर वह उसके हृदयको पलट न सके !
___ एक दिन सागरदत्तकी दृष्टि एक वणिक सुताके सुन्दर रूप सौन्दर्यपर जा भटकी थी। उसके मनमोहक सौन्दर्यने सागरदत्तको विह्वल बना दिया था। वह उसके मुखरूपी कमलका भौंरा तो
* इनकी कथायें श्वेताम्बराचार्यके “ पाश्वनाथ चरित "के आठवें सर्गमें वर्णित हैं । दिगम्वर शास्त्रोंमें इनका उल्लेख नहीं है।