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________________ मक्खलिगोशाल, मौद्गलायन प्रभृति शेष शिप्य । [३२७. कारण उनके अन्य कथनपर भी सहसा विश्वास नहीं किया जा सक्ता ! आधुनिक विद्वान् भी इसी निष्कर्षपर पहुंचे हैं कि गोशाल भगवान् महावीरका शिष्य नहीं था; परन्तु साथ ही वह श्वेतांबर ग्रेथों के आधारसे जो स्वयं उसे भगवान महावीरका गुरु बतलाते है और भगवानने नग्न भेष उससे ग्रहण किया था, जो यह कहते है वह भी ठीक नहीं है ! जेन मान्यताके अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर स्वयं बुद्ध होता है और इसी अनुरूप किसी भी जैन अथवा अजैन शास्त्रसे यह प्रमाणित नही है कि भगवान महावीर अथवा किसी अन्य तीर्थकरने किसी व्यक्तिसे कोई शिक्षा ग्रहण की हो । जिस श्वेतांवर ग्रन्थके बल आधुनिक विद्वान गोशालको भगवानका गुरु बतलाते है स्वय उससे भी यह प्रमाणित नहीं होता कि गोशालसे भगवानने कुछ सीखा हो । नग्न भेष ग्रहण करनेकी बात भी उल्टी है ! भगवान महावीरके निकट आकर गोशालने नग्न भेष ग्रहण किया था। तब फिर भला यह कैसे संभव है कि भगवानने उससे नग्न भेष ग्रहण किया हो । इस दशामें आधुनिक विद्वानोंकी यह सब कोरी कल्पना ही है ! गोशालके विषयमें यह स्पष्ट है कि उसने अपने सिद्धात 'पूर्वो' से लिये थे और यह पूर्व सिवाय जैन पूर्वोके और कोई थे नहीं । यह आधुनिक विद्वान भी मानते है। साथ ही उसके सिद्धांत भी जैनसिद्धांतोंसे लिये हुये प्रगट होते १-आजीवियस भाग १ पृ० १७, जैनसूत्र (S. B. E YOL XLV) भाग २ भूमिका ५ ।२-पूर्व दोनों प्रमाण, हिस्टारील ग्लीनिंग्स प० ३८-४१ और प्री.बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी प्र० ३७४ और ३८१। ३-विशद विवेचनके लिए "वीर" वर्षे ३ अक १२-१३ देखना चाहिये । । ४-आजीविक्स भाग १ पृ. ४२-४५'।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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