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________________ ३२० ] भगवान् पार्श्वनाथ | सोमप्रभने यज्ञोंके द्वारा जो फल नहीं प्राप्त कर पाया था, वह वहीं के एक गरीवपर दानशील विश्वभूति नामक ब्राह्मणने मुनि पिहिताश्रवको आहारदान देने से उपार्जन कर लिया था । इम दानशील ब्राह्मणके फल - प्रभावको देखकर ही राजा पिहिताश्रव मुनिराज के निकट गया था और उनसे अन्तत श्रावक के व्रत उसने ग्रहण किये थे | यह कथा भी सभवत. भगवान पार्श्वनाथजीके तीर्थंके मुनि पिहिताश्रवसे सम्बंधित है । इनके अतिरिक्त अन्यत्र हमें मुनि पिहिताश्रवके विषय में कुछ अधिक ज्ञात नहीं होता है । तथापि इतने विवरण से यह तो स्पष्ट ही है कि मुनि पिहिताश्रव सर्वत्र विचर कर उस समय धर्मका उद्योत कर रहे थे । किन्तु खेद है कि उनके विषय में इससे अधिक और कुछ ज्ञात नहीं है । दिगंबर जैन शास्त्रोंमें इनके अतिरिक्त संजय, विजय, मौनलायन आदि जैन मुनियोंका उल्लेख भी हमें भगवान् पार्श्वनाथजीके तीर्थकालमें हुआ मिलता है और इन सबका उल्लेख हम अगाड़ी एक स्वतंत्र परिच्छेद में करेंगे । यहांपर श्वेतांबर संप्रदाय के साहित्यपर भी एक दृष्टि डाल लेना आवश्यक है । वहां हमें भगवान पार्श्वनाथजीके तीर्थके सर्वाभिमुख मुनिके रूपमें श्रमण केशीके दर्शन होते है ।' यह भगवान महावीरस्वामी के समय में विद्यमान थे और एक सघके आचार्य थे । इन्हींकी अध्यक्षतामे पार्श्व स्वामी के तीर्थ के मुनियोंने श्री महावीरस्वामीकी शरण ग्रहण की थी, यह श्वेतांबर शास्त्रोंका कथन है । इससे अधिक इनके विषय में हमें और कुछ ज्ञात नहीं है । इनके अतिरिक्त श्री भावदेवसूरि भगवान् १ - उत्तराध्ययन सूत्र २३ ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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