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भगवान पार्श्वनाथ । मिलता है। केवल इन्हीके संबंधमें यह बात नहीं है, बल्कि उस समयके किसी भी अन्य गणघर अथवा मुनिका पूर्ण परिचय अभाज्यवश प्राप्त नहीं है। सब ही दिगंबरजैन शास्त्रोंमें केवल यही उल्लेख मिलता है कि भगवान् पार्श्वनाथजीके दश गणधर थे, जिनमें प्रमुख -स्वयंभू थे। 'गणधरादि महर्षिस्तोत्र में भी इनका कुछ विशेष परिचय नहीं मिलता है । वहां भी केवल नामोल्लेख है, यथाः
'नेमि पार्श्व स्वम्भवाद्या गौतमाद्याश्च सन्मतिं । नेम्यो गणधरेशेभ्यो दत्तोऽर्योदयं पुनातु वः॥'
स्वयंभू महाराजके अतिरिक्त अवशेष नौ गणधरोंका उनमें नाम भी नहीं मिलता है। सचमुच इतने प्राचीनकालके महत पुरुबोंका विशेष परिचय पाना कठिन है। हा. श्वेताम्बर संप्रदायके अर्वाचीन साहित्यमें अवश्य ही इन सबके नाम दिये हुये मिलते
हैं; किन्तु वे आपसमें ही एक दुसरेके खिलाफ हैं । इतना अवश्य __ है कि प्रायः वे सब ही भगवान्के प्रमुख गणधरका नाम "आर्यदत्त"
बतलानेमें एकमत हैं। दिगम्बर और श्वेताम्बरोंके इस मतभेदका कोई विशेष कारण तो दृष्टि नहीं पड़ता है। होसक्ता है कि दोनो संप्रदायोंने अपने आपसी मतभेदके कारण पूर्व पट्टावलियोंमें भी अन्तर रक्खा हो । श्वेताम्बरोंके 'पार्श्वचरित'में भगवानके दश गणधरोंके नाम यूं बतलाये हैं:-आर्यदत्त, आर्यघोष, वशिष्ठ, ब्रह्मनामक, सोम, श्रीधर, वारिषेण, भद्रयशस, जय और विजय', किन्तु उनके 'शत्रुञ्जयमहात्म्य' में केवल 'आर्यदत्तकी अध्यक्षतामे नौ सुरियोंका होना' लिखा है और ‘फल्पसूत्र में केवल गणघर आर्यदत्तका ही भावदेवसूरि, पा०च सर्ग: श्लो. १३५०-१३५८१२ शत्रुजयमाहात्म्य १४१६८