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________________ भगवान् पार्श्वनाथ । देश ऐमा बाकी न बचा जिसमें भगवान के दिव्य संदेशने अपना प्रमाव दिगन्तव्यापी न बना लिया हो ! इसी अनुरूप उन भगबान्के प्रभावशाली प्रमुख शिष्य हनारोंकी संख्या थे । यह सर्व ही शिप्य गृहत्यागी और परोपकारी महापुरुष ही थे। इनसे वेष्टित होकर भगवान पार्श्वनाथ ऐसे ही गोमित होरहे थे जैसे वारिकामण्डलमें चन्द्र मनको हरनेवाला होता है। यही नहीं कि इन शिप्यों द्वारा भगवान्की ही शोमा और गौरव बढ़ रहा होउनके तो गुण स्वभावतः निर्मल और प्रकर्षरूप थे। किन्तु अनेकों भव्य पुरुषोंका कल्याण इनके द्वारा हुआ था। इनसे भारतका गौरव वता था । अहिंसामई सार्व प्रेम और आत्मीक भाव इन्हींके सत्प्रय. लोंसे अपना अपना प्रखर प्रकाश यहां फैला रहे थे । विश्वप्रेमकी उमंग हर हृदयमें लहर मारने लगी थी। इसमें मुख्य कारण भगवान् पार्श्वनाथजीका धर्मोपदेश ही था किन्तु उनके प्रमुख शिप्य भी उसमें प्रधान कारण थे। श्री गुणमद्राचार्यजी कहते हैं कि "भगवान् पार्श्वनाथके समवशरणमें स्वयंभुवको आदि लेकर दश गणघर थे, ग्यारह अंग और चौदह पूर्वको धारण करनेवालोंकी संख्या तीनसौ पचास थी। दशहजार नौसो शिक्षक मुनि थे और एकहजार चारसौ अवविज्ञानी थे। इसीप्रकार एकहजार केवलज्ञानी थे, एक ही इनार विक्रिया ऋद्धिको धारण करनेवाले थे। सातसौ पचास मन परयनानी थे और छहसौ वादी थे। इसप्रकार शीघ्र ही मुक्त होनेवाले सब मुनियोंकी संख्या सोलहहजार थी!"' यह सन ही महान ऋषिगण सर्वत्र विचरकर प्राणियोंको अभयदान देते हुये १-उपपुगा पृ. ५८० । -
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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