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________________ धर्मोपदेशका प्रभाव । पार्श्वनाथजीने ज्योंही सत्यका सिंहनाद प्राकृतरूपमें घोषित किया था त्योंही इन गहनवनोंके भीतरवाले आश्रमोंमें भी हलचल मच गई थी, अग्निहोत्रिकी उच्च ज्वालायें एक क्षणके लिये थम गई थीं। शिष्यगण एवं साधारण जनता धर्मके नामपर की जानेवाली इस हिंसाके विषयमें सशक हो स्पष्टरूपसे इसका समाधान करनेका आग्रह करने लगे थे। सत्यका वहांपर प्रायः अभाव देखकर वह भगवानकी शरणमें आये थे। यही कारण था कि भगवान पार्श्व नाथका सम्बोधन उस प्राचीनकालमें "सर्वजनप्रिय" ( People's Favourite ) के नामसे होने लगा था। ईसाकी प्रारंभिक शताब्दियोंमें हये श्री समभद्राचार्यनी भी यही कहते हैं कि " निस घातिया कर्मों के नाश करनेवाले तीनलोकके स्वामी पाचप्रभुको देख वनवासी कुतपस्वी, पञ्चाग्नि आदि साधनोंमें त्रिफल मनोरथ होते हुए, भगवानके सदृश होनेकी इच्छासे, शांतिके उपदेश भगवान् अथवा जिसमें शातिका उपदेश है ऐसा मोक्षमार्ग उसके शरणीभूत हुये अर्थात सच्चे मार्गमें लगे थे।" शकसंवत् ७३६में हुये श्री जिनसेनाचार्य भी अपने "पार्श्वभ्युदयकाव्य"में यही कहते हैं, यथा'इति विदितमहर्दि धर्मसाम्राज्यमिन्द्राः, जिनमवनतिभाजो भेजिरे नाकभाजाम् । शिथिलितवनवासाः प्राक्तनीं प्रोज्थ्य वृत्ति, शरणमुपययुस्त तापसाः भक्तिनम्राः॥ ६९ ।। "टीका-जटिलादयः कुतापसाः निनकायलेशे निष्फलत्वं 'निश्चिन्वन्तः । तपोमहिम्ना प्राप्तोदयं पार्श्वतीर्थकरं तत्तपोलम्बुकामा: शरणं ययुरिति भावः । यो गिगट् । "
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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