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२७२] भगवान पार्श्वनाथ । कभी भी पदार्थका निर्णय नहीं होसक्ता है। इस एकात पक्षके हठ अन्धोवाली मसल चरितार्थ होनाती है । जिसप्रकार कई अघोंने हाथीके विविध अगोपागमेंसे एकर को देखकर हाथीको वैसा ही माननेकी निद की थी, उसी प्रकार एकात दृष्टिसे हम वस्तुके एक पक्षको ही प्रगट कर सक्ते है और वह पूर्णत सत्य नहीं होसक्ता है। अनेकांत अथवा स्याहाद सिद्धातमें यही विशेषता है कि वह वस्तुको सर्वाग रूपमें प्रगट कर देता है और परस्पर विरोधी जचनेवाली वातोंको मेट देता है । उक्त उदाहरणके अन्धे पुरुषोंका झगड़ा इस सिद्धांतकी बदौलत सहजमे सुलझ जाता है। अन्धोंका एक पक्षसे हाथीको उसके पैरों जैसा लम्बा या पेट जैसा चौडा आदि मानना ठीक नहीं है । परन्तु उनका वह कथन असत्य भी नहीं है। हाथी अपने पैरों की अपेक्षा लम्बा भी है, इसतरह कहनेसे वह ठीक रास्तेपर आसक्ते हे और परस्पर भेदको भेट सक्ते हैं। यही इसका महत्त्व है । एक आचार्य कहते है कि:
'कर्मद्वैतं फलद्वैत लोकद्वैतं च नो भवेत् । विद्याऽविद्याद्वयं न स्यात् बन्धमोक्षद्वय तथा ॥२५॥
भावार्थ-'एकांतकी हठ करनेसे पुण्य-पापका द्वैत, सुख दुखका द्वैत, लोक परलोकका द्वैत, विद्या अविद्याका द्वैत तथा वंध मोक्षका द्वैत कुछ भी नहीं सिद्ध हो सकेगा।' इसलिये स्याहाद सिद्धांत ही सर्वथा पदार्थका सत्यरूप सुझाने में सफल होसक्ता है। आपसी भेदोंको भी वही मिटा सक्ता है । इसी सिद्धांतको ध्यानमें रखनेसे कोई भी शंकायें अगाड़ी नहीं आसक्ती हैं। अस्तु !
भगवान् पार्श्वनाथजीके धर्मोपदेशका महत्त्व इतनेसे ही हृदयं