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________________ २६२] भगवान पार्श्वनाथ । ___४. मोहनीय कर्म-इसके द्वारा आत्माका श्रद्धान व चारित्रगुण विकृत होता है। यहांतक यह चारो कर्म आत्माके निजी स्वभावके विरोधक हैं, इसलिये इन चारोंको 'चार घातिया कर्म' कहते हैं। ५. वेदनीय कर्म-वह शक्ति है जिसके द्वारा ससारी नीवको सुख-दुखकी सामिग्री प्राप्त होती है । ६ नामकर्म-वह शक्ति है जिसके द्वारा जीवात्मा विविध शरीर धारण करता है। ७. गोत्रकर्म-वह शक्ति है जिसके द्वारा जीवात्मा उच्च और नीच कुलमें जन्म लेता है। ८. और आयु कर्म-वह शक्ति है जिसके द्वारा जीवात्मा एक नियत कालके लिये मनुष्य, देव, तिथंच और नर्कगतिमें निर्वासित रहता है। इन आठ प्रकारकी कर्मशक्तियों के कारण ही जीवात्मा संसारमें मुख-दुःख भुगतता रहता है । यह कर्म शक्तियां मनुष्यकी मन, वचन, कायकी दुरी और भली क्रियाके अनुसार ज्यादा और कम जटिल होनी रहती हैं, यह ऊपर देखा जाचुका है । जैनगास्त्रों में बड़े विस्तारसे इन कर्मशक्तियोके फल देनेका व्यौरा दिया है। तत्वार्थधिगम सूत्र और गोमट्टपारनीमें इसको इसतरह स्पष्ट कर दिया है कि मनुप्य अपना भविष्य जैसा चाहे वेसा बना सक्ता है। उमे प्रारत नियमोका प्रत्यक्ष अनुभव होनाता है, जिसके बल बह सपने आय-व्ययका लेखा बगबर मिलाता रहता है। यह कर्मवमंगाये हरक्षण जीवात्मामें आती भी रहती है और झड़ती भी
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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