SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८] भगवान् पार्श्वनाथ । NAA भूगुवातका धर्मोपदेश ! 'तमोत्तु ममतातीत ममोत्त ममतामृत । ततामितमते तात मतातीतमृतेमित ॥१०॥ ___-श्री समन्तभद्राचार्य । 'हे पार्श्वनाथ ! आप ममत्व रहित है । ममता-तस्कर आपसे कोसो दर रहता है, इसी लिये 'आपका आगमरूपी अमृत सर्वोत्कृष्ट है । आपका केवलज्ञान भी अतिशय विशाल और अपरिमित है।' उसके धवल आलोकमे अज्ञानतमसे चुधियाई हुई जखे यथार्थ सत्य को देखने में समर्थ होनी है । उम वैज्ञानिक उपदेशके बल हो लोक इप्स अगाध ससारसागरके पार पहुचनेका साहस कर पाता है । सचमुच भगवानके वस्तुस्वरूपमय धर्म-पीयूष को यीकर ही महान् संसार--रोगमें ग्रसित मनुष्य उपसे मुक्ति पालेते हैं। इसीलिये हे भगवन् । 'आप सबके बंधु है ! जन्म नरा मरण रहित है तथा अपरिमित हैं। आपके ये चरणयुगल मेरा ही क्या सारे ससारका अज्ञानांधकार दूर करदें यही भावना है । आपके परमपावन चरित्रका अवगाहन करते हुये आपके दिव्योपदेशके दर्शन पालेना भी परम उपादेय और आवश्यक है। भगवान पार्श्वनाथके जीवनचरित्रमें यही एक अवसर इतना महत्वशाली है कि इसका प्रभाव उसी क्षण दिगन्तव्यापी हो गया था। तीर्थंकर भगवानका सर्वज्ञानको प्राप्त होना और फिर प्रास्त धर्मामृतकी वर्षा करना बड़ा ही महत्वपूर्ण और प्रभावशाली कार्य है। जिसतरह भगवान महावीरके जीवन में उनके इस दिव्य अवसरका प्रभाव म०
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy