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________________ __ २०६ ! भगवान पार्श्वनाथ । और योग्यतापर दृष्टि डाली, कर्तव्याकर्तव्यकी ओर निगाह फेरी" पिताने कहा-वंश वेलको अगाड़ी चलानेके लिये भगवान ऋषभ नाथकी तरह तुम भी विवाह करलो परंतु रानकुमार पार्श्वने ऋषभदेवसे जो अपनी तुलना की तो उनको इस प्रस्तावसे सहमत । होता कठिन होगया । उन्होंने कहा-'मै ऋषभदेवके समान नहीं हूं, मात्र सौवर्षकी मेरी आयु है, जिसमें से सोलह वर्ष तो व्यतीत होचुके है और तीस वर्षमें सयम धारण करने का अवसर आजायगा। इसलिए नरराज! अब मुझे इस झंझटमें न फसाइये। देखिये. चहुओरका वातावरण कैप्ता असंयमी बन रहा है । लोग ब्रह्मचर्यके ,' महत्वको ही नहीं समझते हैं। गृहत्यागी लोग तक पुत्रोत्पत्तिकी आशासे.. विवाह करना अपना धर्म माने हुये है। गृहवाप्स छोड़कर जगलोंमें आकर : चसे हुये लोग भी आज इद्रियनिग्रहसे मुंह मोड़ रहे है। इसलिये हे पितानी । कर्तव्य मुझे बाध्य कररहा है कि मैं आपके प्रस्ता... वको अस्वीकार करू। अल्पकाल और अल्प सुखके लिये आप ही . बताइये मैं क्योकर इस झंझटमें पडूं ?, इस अल्प प्रयोजनके लिये अपने कर्तव्यको कैसे ठुकरा दूं ? राजकुमार पावके इस प्रकार सारपूर्ण वक्तव्यको सुनकर राजा विश्वसेन चुप होगये. परन्तु इस घटनाने उन्हें मर्माहत बना दिया । वह मन ही मन विलखते हुये नेत्रोंमें ही आंसुओंको छुपा , ले गये। पुत्रका विवाह करनेकी लालसा किसे नहीं होती है और उस लालमापर कहीं पानी फिर जाय तो अपार दुःखका अनुभव क्यों नहीं होगा ? किन्तु राना विश्वसेन बुद्धिमान थे। वह कर्तव्य अकर्तव्य और हिताहितको जानते थे। पार्श्वनाथजीके मार्मिक
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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