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________________ १९४] भगवान पार्श्वनाथ । जिसकी राजधानी पुण्डरीकणी नगरी थी। हिन्दू पुराणोंमे पाताल इसी भावका द्योतक है और यह वहां 'नि-तल' के पर्यायवाची रूपमें व्यवहृत हुआ है। इसलिये सोगडियनदेश ही पाताल था। श्वेतहणों के लिये व्यवहृत 'इफथैलिट्स' (Ephthalites) शब्दसे पातालकी उत्पत्ति हुई बतलाई गई है और इस पातालमें सारी मध्य एशियाका समावेश होता बतलाया गया है। श्वेतहण अथवा इफथैल्ट्सि नक्षरतसका (lararles) की उपत्ययिकामें बसनेवाली एक बलवान जाति थी, जिमने सिकन्दर आजमके बहुत पहले भारतपर चढ़ाई की थी और वह पंजाब एवं सिंघमें बस गई थी। स्कंधगप्तके जमानेमें भी उनके वंशजोंने भारतपर आक्रमण किया था। इफथलिट्मके लिये हिन्दुओंने इलापत्र शब्द व्यवहारमें लिया था। इलापत्रका अपभ्रंश 'अला' और 'पाता' होता है, जिसके पलटकर रखनेसे पाताल शब्द बना हुआ आजकल विहान बतलाते हैं। सिबमें इन्हीं लोगोंके वमनेके कारण यूनानी इतिहासवेत्ताओंने सिघ प्रदेशको पातालेन (Patolene) और उसकी सजघानीको पाताल लिखा है । इस तरह समग्र पाताल अथवा रसातल पूर्वमें वृहद पामीर ( Grent Pamir ) पश्चिममें वेवीरोनिया, उत्तरमें कैम्पियन समुद्रके किनारेवाले देशों और जमरतम नदी एवं दक्षिणमें सभवतः भारत महासागरसे सीमित था।" इम विवरणमे पातालपुर केम्पियन समुद्रके पास अवस्थित प्रमाणित होता है । मिश्रसे वहांतक पहुंचने में कम्पियन समुह - - - पृ. ४५९ ३-४-पूर्व प्रमा। ५-:-पृ०
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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