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भगवान पार्श्वनाथ |
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जाति पहले भारतमें मौजूद थी और यह जैन मूर्तियां उन्हीं द्वारा निर्मित हुई थी ।' किन्तु साथमें यह भी ध्यान में रखनेकी बात है कि २२वें और २३वें तीर्थंकरोके शरीरका वर्ण भी जैन शास्त्रोमें नील बतलाया गया है । मथुरासे जो प्राचीन जैन मूर्तियां आदि निकली है उनकी भी सदृशता मिश्र देशके ढगसे है। खासकर उनमें जो चिन्ह थे वह मिश्रदेश जैसे ही थे । मिश्रदेशमे जो क्रास (Cross) चिन्ह माना जाता है वह अन्य देशो से भिन्न समकोणका होता था (+), यह जैनस्वस्तिकाका अपूर्णरूप है । मिश्रवासी अपनेको ज्योतिषवाद के सृष्टा समझते थे और उनके निकट ज्योतिषका महत्व अधिक था, यह खासियत भी जैनधर्मसे सहशता रखती है। जैनधर्मकी द्वादशाङ्गवाणीके अतरगत इसका विशद विवरण दिया हुआ था, जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोलके भद्रबाहु - बाले लेखमें भी है । वौद्धो के प्रख्यात् ग्रन्थ ' न्यायबिन्दु 'में जैन तीर्थंकरो ऋषभ और महावीर वर्द्धमानको ज्योतिषज्ञान में पारगामी होनेके कारण सर्वज्ञ लिखा है । साथ ही मिश्रवासियोंका जो स्फटिक चक्र' (Zodiacal stone at Denderah) डेन्डेराह में है वह जैनियोंके ढाईद्वीपके नक्शेसे सदृशता रखता है । मिश्रकी प्रख्याति मेमननकी मूर्ति ( Statue of Memnon ) की एक विद्वान् 'महिमन' की जिनको हम महावीरजी समझते है, उनकी, बतलाते है । अतएव इन सब बातोंसे मिश्रदेशमें किसी समय,
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१- ऐशियाटिक ग्सिचेंज भाग ३ पृ० १२२ - १२३ २ - 'ओरियन्टल',, अक्टूबर १८०२, पृ० २३-२४ ३-स्टोरी 'ऑफ मैन पू० १७२ ४ - पूर्व ०२ पृ० १८७५- भद्रबाहु व श्रवणबेलगोल - इन्डियन एन्टीक्वेरी भाग ३ ५० १५३ ६ - न्यायविन्दु अ० ३ ७-स्टोरी आफ मैन पृ० २२६ ऐशियाटिक रिसचेंज भाग ३ पृ० १९९
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