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नागवंशजोंका परिचय! [१७७ इथ्यूपियामें थे, तो हनूमान और रामचंद्रजीको जो वहां जाते हुये मार्गमें देश पड़े थे, वह भी यथावत आन मिश्र जाते हुये मिल जाना चाहिये। पाताल लंकामे रावणके बहनोई खरदूषणको मारकर रामचन्द्र वहां विद्याधर विराषितके कहने और राक्षसवशके मित्र किष्किघापुरके वानरवंशियों-सुग्रीव आदिके भयसे चले गये थे, परंतु वह वहां ज्यादा दिन नही ठहरे थे और वापिस कि कन्धापुर मुग्रीवकी सहायता करने चले आये थे। उनका वहां अधिक दिन ठहरना भी उचित नहीं था, क्योकि आखिर वहां रावणका भय अधिक था और जबकि रावणको राम-लक्ष्मणके पाताल लंकामें होनेका पता चल गया था, तब उनका पाताल-लंकाकी ओरसे आक्रमण करना उचित नहीं था। सुतरां मालूम तो यह पडता है कि रामचंद्रनीके किष्किन्धा चले आनेके अन्तरालमें रावणने अपने सन्ध्याकार आदि देशोके राक्षप्तवंशियोंपर संदेशा भिजवा दिया था। इसकारण वे हसद्वीपसे अगाडी बढने ही नहीं पाये थे। हतभाग्यसे हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं है, जिससे इन देशोका पता चला सकें जिनमें राक्षसवंशज रहते थे। हां, इनमेसे रत्नद्वीपका पता अवश्य ही चलता है और यह आजकलकी लका ही है, यह हम देख चुके हैं । यह हो सक्ता है कि यह ' सन्ध्याकार आदि प्रदेश उस पृथ्वीपर अवस्थित हो जो अब समुद्र में डूब गई है, क्योकि यह तो विदित ही है कि अफ्रिकासे भारतके उत्तर-पश्चिमीय तटतक एक समय पृथ्वी ही थी। अस्तु; अब 'यहांपर पहले हनूमा-' नजीके लंका आनेके मार्गपर एक दृष्टि डाल लेना उचित है। , १. ऐशियाटिक रिसर्चेज़ भाग ३ पृ. ५२ । १२