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नागवंशजांका परिचय! [१६७ लंका पहुंचे थे। उधर वहांसे आकर किहकंधापुरके राजा सुग्रीवकी सहायता राम-लक्ष्मणने की, सो सव वानरवंशी इनके सहायक हो गये थे । इसी समय क्रौंचपुरके राजा यक्ष और रानी राजिलताका पुत्र यक्षदत्त था। वह एक स्त्रीपर मोहित था। ऐनमुनिके समझानेसे वह मान गया था। उपरांत किहकंधापुरसे हनूमान सीताका पता लगाने चला था, सो पहले उप्तने महेन्द्रपुरमें अपने मामाको बश किया था। उनको रामचंद्रजीके पास भेजकर फिर वह अगाड़ी बढ़ा था और उसे दधिमुखद्वीप पड़ा था जिसमे दधिमुख नगर था। वहां निकट आग लगे वनमें दो मुनिराज व तीन कन्यायें हनूमानजीने देखी थी । उनका उपसर्ग उन्होने दूर किया था । दधिमुख नगरके राजा यक्षकी वे तीन कन्यायें यीं। आखिर उनको रामचंद्रने परणा था। फिर हनूमान लंका पहुच गए थे। प्रमदवनमें उसने सीताको देखा था। हनूमान सीताकी खबर ले जब लौट आए तब राम-लक्ष्मणने लंकापर चढ़ाई की थी। वे पहले वेलंधरपुर पहुंचे थे और वहाके समुद्र नामक राजाको परास्त किया था। फिर सुबेल पर्वतपर सुबेल नामक विद्याधरको वश किया था। उपरांत अक्षयवनमें रात्रि पुरी की थी। अगाड़ी चले तो लंका दूरसे दिखाई पडी । हंसद्वीपमे डेरा डाले और वहांके हंसरथ राजाको जीता। हंसद्वीपके अगाडी रणक्षेत्र रच दिया। रावणके सेनापति अरिंजयपुर नगरके राजाके दो पुत्र थे । यह अपने पूर्वभवोमें एकदा कुशस्थल नगरमें निर्धन ब्राह्मण जिनधर्मसे पराङ्मुख थे। जैनी मित्रके संयोगसे जैनी हुये और फिर अन्य भवमें तापस होकर अरिंजयनगरके राजाके पुत्र हुये थे । रावणसे युद्ध हुआ। सुग्रीव और भामण्डल