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१५६] भगवान पार्श्वनाथ । भेदोके समान ही वहाये | टमी तरह नागलोक अश्या पातालके निवासी विद्याधर नाग, सुपर्ण, गरुर, विद्युत आदि नामसे प्रख्यात हुये । इसप्रकार इस मनुष्य लोकमें ही देवलोक्की नस्ल की गई थी। विद्याधर लोग हम आप जसे मनुष्य ही थे और आर्यवगन क्षत्री थे। अस्तु, इस उल्लेखसे नागवगियो। आर्यवान मनुष्य होना प्रमाणित है और यह प्रक्ट है कि देवलोककी तरह नागद्वेग
और वंश यहा भी मौजूद थे। अत जन कथाओौके नागलोक मनुप्य भी होसक्ते है जैसे कि हम पूर्व परिच्छेदमें देख चुके हैं।
विनया पर्वत भरतक्षेत्रके बीचोबीचमें बनलाया गया है । इम पर्वत और गगा-मिंधु नदियोंमे भरनक्षेत्रके छह खण्ड होगये हैं। जिनमेसे वीचका एक रूण्ड आर्यखण्ड है और गेप पत्र म्हेच्छ खण्ड है । भरतक्षेत्रका विस्तार ६२६६. योजन कहा गया है और एक योजन २००० कोसका माना गया है । अतएव कुल भरतक्षेत्र आजकलकी उपलब्ध दुनियासे वहत विस्तृत ज्ञात होता है । इस अवस्थामें उपलब्ध पृथ्वीका समावेश भरतक्षेत्रके आर्य खण्डमें ही होजाना संभव है और इसमें विजयाध पर्वतका मिलना कठिन है । श्रीयुत प० वृन्दावनजीने भी इस विषयमें यही कहा था कि-"भरतक्षेत्रकी पृथ्वीका क्षेत्र तो बहुत बड़ा है। हिमवत कुलाचलते लगाय जंबृद्दीपकी कोट ताई, बीचि कछू अधिक दग लाख कोश चौड़ा है। तामें यह आवखण्ड भी वहत बड़ा है। यामै वीचि यह खाडी समुद्र है, ताळू उपसमुद्र कहिये है। .. अर अवार
१-पूर्वग्रन्थ पृ० ११:। --पूर्वत्रन्य प्र० ३८ । 3-सक्षिप्त जन इतिहास पृ० २ । ४-वत्वार्थाधिगम् सूत्र (S. B. J.) पृ० ९१।