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नागवंशजोंका परिचय ! [ १५३ मौजूद था और इस तरह उनका वहांपर प्राचीन अधिकारही होना चाहिये । इसलिये अहिच्छत्रकी तद्वत् प्रख्याति भगवान पार्श्वनाथकी विनय नाग छत्र आदि लगाकर वहांके नागवंशी राजानेकी इस कारण हुई थी, यह स्पष्ट है । श्री भावदेवमूरिके कथनसे इस विषयकी और भी पुष्टि होती है। वह कहते हैं कि 'कौशम्ब' वनमें धरणेन्द्रने आकर भगवान पार्श्वनाथके शीशपर अपना फण फैलाकर कृतज्ञता ज्ञापन की थी, इसलिए वह स्थान 'अहिच्छत्र' कहलाने लगा।' यहापर भाव नागराजाके विनय प्रदर्शनके ही होसक्ते है क्योंकि हम भावदेवसूरिसे पहले हुये वादिराजमृरिके अनुसार धरणेन्द्रकी कृतज्ञता ज्ञापनका स्थान स्वय बनारस ही देख चुके हैं । अस्तु, या करीब २ निश्चयात्मक रूपमें कहा जासक्ता है कि भगवान पार्श्वनाथका परमभक्त धरणेन्द्रके अतिरिक्त एक नागगना भी था।
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१-पाश्वनाथचरित सर्ग १० श्लोक १४३......।