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, बनारस और राजा विश्वसेन। [१०? वह सीधे यहीं आये थे और यहांपर जो उनके पहले साथी तपस्या कर रहे थे उनको अपने मतमें दीक्षित किया था। यह घटना भगवान पार्श्वनाथके निर्वाण होनेके उपरांतकी है। वैसे इससे पहलेके भी उल्लेख बौद्धशास्त्रोंमें हैं; जहां वे म० बुद्धके पूर्वभवोंका जिक्र करते हुये बनारसका सम्बन्ध प्रगट करते हैं। शाक्यवंशकी उत्पत्तिमें भी काशीका सम्बन्ध उनके 'महावस्तु' नामक शास्त्रमें बतलाया गया है, तथापि कोल्यिवंशके विषयमे भी ऐसा ही उल्लेख उनके शास्त्रोंमें है। 'सुमंगलाविलासिनी' (ए० २६०-२६२) में लिखा हुआ है कि राजा ओक्काककी बड़ी पुत्रीको कुष्टरोग हो गया । उसके भाई इस संक्रामक रोगसे भयभीत हुये। उन्होने अपनी वहिनको लेजाकर एक गहन वनमें कैद कर दिया। उधर बनारसके राजा रामको भी कुष्टरोग होगया। वह घरको छोड़कर उसी वनमें भटकने लगा । अकस्मात् वनवृक्षोके फल खानेसे उसका रोग नष्ट होगया। इसी बीचमें उसने ओकाककी पुत्रीको पा लिया । उसे भी उसने उस वनवृक्षके फल खिलाकर अच्छा कर लिया और उसको अपनी पत्नी बना लिया । राजाने उसी वनमें एक कोल वृक्षको हटाकर नगर बसा लिया और उसीमे रहने लगा। अन्ततः वह नगर कोलनगर कहलाने लगा और उसकी सन्तान 'कोल्यि' नामसे प्रसिद्ध हुई। परन्तु उनके 'महावस्तु ' में इससे विभिन्न एक अन्यकथा इस वंशकी उत्पत्तिमें दी हुई है। अस्तु; इतना प्रगट है कि काशी में भी कोई राम नामक राजा होचुके हैं। जैनियोंके
१-देखो 'भगवान महावीर और नबुद्ध' पृ० ७७ । २-सम क्षत्रिय ट्राइव्स ऑफ एनशियेन्ट इन्डिया पृ० १५१-१७५। ३-पूर्व पुस्तक पृ० २०६। ४-पूर्व० पृ० २०७ ।