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________________ ___९४] भगवान पार्श्वनाथ । किया गया है। भगवान पार्श्वनाथ इस अवसर्पिणीकेचौये कालके अतिम समयमेहये थे। आजकल इसीका पंचमकाल जो देखकर पूर्ण है व्यतीत हो रहा है । इसी अवसर्पिणीके अथवा कर्मयुगके प्रारंभिक दिनोमें काशी और वाराणसीकी सृष्टि हुई थी। आज वाराणसी और जागी केवल बनारस नगरके ही नाम है. परन्तु प्राचीन कालमें काशी एक प्रख्यात जनपद था और वाराणसी उसकी राजधानी थी। ___पाणिनिके व्याकरणके अनुसार 'वर' और 'अनस' शब्दसे वाराणसीकी उत्पत्ति हुई वतलाई जाती है । अर्थात वर माने सर्वोत्तम और अनस माने पानी- जिसका सम्बध बनारसका गंगातटपर जव स्थित होना है। ब्राह्मण लोग इस नामको 'वल्णऔर 'बसि' नामक झरनाओंकी अपेक्षा निीत करते हैं। ग्रीक (यूनानी) लोगोंको भी बनारसका किचिन परिचय था । उनका प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता टोलमी (Ptolemy) काशीको 'कस्सिडिया' (Cassidia) नामसे उल्लेख करता है। उनके अनुसार पहले काशीकी राजधानी भी इसी नामकी थी। उपरान्त प्राचीन काशी नगरका विध्वंश जब बच्छू लोगों (Bacchus) द्वारा होमया था, जसे कि योनिसियस पेरीगेटस (Dronrsius Periogetes) बतलाता है, तब प्राचीन नगरके ध्वंशावशेषोसे किंचित हटकर वाराणसी वसाई गई थी। ग्रीक लोग वाराणसीको 'ओरनिस' (Aornus) अथवा 'अवरनस' (Arernus ) नामसे परिचित करते हैं। मुगल लोगोंने इसीका नाम बनारस रक्खा था। १. आदिपुराण पर्व ३ ० १४-२३९; पर्व ९३४-८८ । __ . • बुद्धिस्ट इन्डिया पृष्ठ २३।३ एशियाटिक रिनचेंज भाग ३ प ६६२।।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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