________________
[८]
प्रसिद्ध राधास्वामी महर्षि श्री शिवव्रतलालजी वर्मन एम० ए०, एल० एल० डी० श्री पार्श्वनाथका अस्तित्व स्वीकार करके कहते है कि " जैनियोंमेंसे कोई पार्श्वनाथकी पूजा करता है, कोई महावीरस्वामीकी, इन सबमें मतभेद बहुत कुछ नहीं है ।"' श्री डा० वेनीमाधव वारुआ डी० लिट० भी श्री पार्श्वनाथनीको महावीरस्वामीका पूर्वागामी तीर्थकर स्वीकार करते है।
इस तरह पर भारतीय विद्वानोकी दृष्टिमे भगवान् पार्श्वनाथ एक वास्तविक महापुरुष प्रमाणित हुये है । यही हाल पाश्चात्य विद्वानोंका है । उनमें बहुप्रसिद्ध प्रो० डॉ० हर्मन नेकोबीफे मन्तव्यपर ही पहले दृष्टिपात कर लीजिये । उन्होने "जैनसूत्रो" की भूमिकामें जैन धर्मको बौद्धमतसे प्राचीन सिद्ध करते हुये लिखा है कि "पार्श्व एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, यह बात अब प्रायः सबको स्वीकार है।"
(That Parsia as a historical person, is now admutted by all, is very probable Jaina Sutras S B E XLV Intro p. XI).
इसी व्याख्याकी पुष्टि डॉ० जार्ल चारपेन्टियर पी० एच० डी० "उत्तराध्ययन सुत्र" की भूमिका (ए० २१) में निम्न शब्दों द्वारा करते है:
"We ought also to remember both thut the Jain religion is certainly older than Mahavira, his reputed predecessor Parssa having almost certainly existed as a real person, and that, consequently, the main points of the onginal doctnne may hare been codified long before Mahayra " (The Uttradbyayan Sutra, Upsala ed Intro P. 21).
१-जैनधर्मका महत्व पृ० १४ । २-हिस्ट्री ऑफ दी प्री बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी पृ० ३७७ ।