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तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति। [६७ वान पार्श्वनाथके समय, बल्कि उसके पहलेसे स्थित धार्मिक वातावरणके दर्शन होते है। इसी महत्वको दृष्टिकोण करके यह कथा यहांपर दी गई है। इस कथाके अबतकके वर्णनसे यह स्पष्ट है कि उस समय देवमूढ़ता, तीर्थमूढ़ता आदिका विशेष प्रचार था। दूसरे शब्दोमें ब्राह्मण लोगोका प्रावल्य अधिक था । देवमूढता यहांतक बढी हुई थी कि लोग भूत, यक्षादिका वास पेडोपर मानकर उनकी पूजा करते थे, उनको अपना देव मानते थे । यही कारण है कि उक्त कथामें श्रावकके कपिरोमा वेलको अपना देव बतानेपर ब्राझ'णपुत्रने कुछ भी आगापीछा न सोचा और उसके कहनेपर विश्वास कर लिया ! साथ ही वेदानुयायियोंने जो देव-ईश्वरको सुखदुखका दाता घोषित किया था, उसका भी इस समय प्रचार था, यह भी इस कथासे स्पष्ट है।
सभव है कतिपय पाठकगण, जैन कथाके उक्त विवरणको विश्वासभरे नेत्रोसे न देखें, उनके लिये हम अन्य श्रोतोंसे जेनकथाके विवरणकी स्पष्टवादिताको प्रकट करेंगे । बौद्ध श्रोतोका अध्ययन करके स्व० मि० बीस डेविड्म इसी निष्कर्षको पहुंचे थे कि बुद्धके समयमें पहलेसे चली आई हुई पेडोंकी पूजा भी प्रचलित थी। उन्ही पेडोंके नामके चैत्य आदि भी बने हुये थे। एक अन्य विद्वान् भगवान महावीर और म० बुद्धके समयकी धार्मिक स्थितिके विषयमे लिखते हुए लिखते हैं कि “पहले यहां एक प्राकृ
१-बुद्धिस्ट इन्डिया और 'डॉयलॉग्स ऑफ दी बुद्ध' भाग २ पृ० ११० फुटनोट तथा मि० आर० पी० चन्दाकी मेडीविल स्कल्पचर इन इंस्टन, इन्डिया, Cal Univ. Journal (Arts), Vol. III.