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________________ उस समयकी सुदशा। [५७ रीतिसे रखते थे। बौद्धकालीन समयमें बिविध रीतिसे किसी व्यक्तिका नामोल्लेख भी होता था। स्वर्गीय मि० द्वीस डेविड्स इसके आठ भेद इस तरह बतलाते हैं: "१-उपनाम-जो किसी व्यक्तिगत खासियतको लक्ष्य कर व्यवहारमें लाया जाता था। जैसे 'लम्बकण्ण' (लम्बे कानोंवाला) 'कूटदन्त' (निकले हुए दांतवाला), 'ओट्टाद्ध' (खरगोश जैसे होठोंवाला), 'अनाथ पिण्डक' (अनाथोंका मित्र), 'दारुपिट्टिक' (काठका कमण्डल रखनेवाला) इन सबका उपयोग मित्रभाव और बिलकुल छूटके साथ होता था । इस तरहके नाम इतने मिलते हैं कि हरकिसीका एक उपनाम होता था ऐसा भान होता है । "२- व्यक्तिगत नाम-जिसको पालीमे मूलनाम कहा गया है। इसमे किसी व्यक्तिगत ख सियतसे सम्बन्ध नहीं होता था। यह वैसा ही था जैसे आजकल हम सबके नाम होते हैं। इन नामोंमें कोई २ बड़े कठिन और विकत है, परन्तु शेष ऐसे हैं जिनके शुभ अर्थ लगाना सुगम है। उदाहरणके तौरपर देखिए 'तिस्स' यह इसी नामके भाग्यशाली तारेकी अपेक्षा है और भी देवदत्त, भद्दिय, नंद, आनन्द, अभय आदि उल्लेखित किए जासक्ते हैं। "३-गोत्रका नाम-जिसको हम खानदानी अथवा इग्रेजीमें “सरनेम' ( Surname) कह सक्ते हैं। जैसे उपमन्न, कण्हायन, मोग्गलान, कस्सप, कोन्डण्ण, वासेट, वेस्सायन, भारद्वाज, वक्खायन। "४-वंशका नाम-जो पालीमें 'कुलनाम' कहा गया है, जैसे सक, कालाम, बुलि, कोलिय, लिच्छवि, वजि, मल्ल आदि । "५-माताका नाम-जिप्तके साथ ‘पुत्त' लगा दिया जाता
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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