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________________ आनन्दकुमार । वत है: ममा दर्पणमें मुह देखोगे वैसा दिखाई पड़ेगा। इसी तरह निसभावसे जिन भगवानकी प्रतिमाका अवलोकन किया जायगा उसी भावरूप पुण्य-पापका बध पूजक होगा। पुण्य पाप जीवके निजभावोके आधीन है। जिस तरह एक सुन्दर वेश्याके मृत देह सो देखकर विषयलम्पटी जीव तो पछताता है कि हाय ! यह जिन्दा न हुई जो में इसका उपभोग करता । एक कुत्ता मनमे कुढ़ता है कि इसे जला ही क्यो दिया गया, वैसे ही छोड़ देते तो मै भक्षण कर लेता और विवेकी पुरुप उसको देखकर विचारते है कि हाय ! यह कितनी अभागी थी कि इस मनुष्य-तनको पाकर भी इसने इसका सदुपयोग नहीं किया। वृथा ही विषयभोगोंमें नष्ट कर दिया। इसी तरह जिनविम्बको देखकर अपनी२ रुचियोके अनुसार लोग उसके दर्शन करते है । वेश्याका निर्जीव शरीर तीन जीवोंको तीन विभिन्न प्रकारके भाव उत्पन्न करनेमे कारणभूत बनगया, यह विलक्षण शक्ति उसमे कहासे आगई ? वह तो जड़ था-उसमें प्रभाव डालने की कोई ताकत शेष नहीं रही थी फिर भी उसके दर्शनने तरहरके विचार तीन प्राणियोके हृदयमें उत्पन्न कर दिये । यह प्रसंग मिल जानेसे जीवोके परिणामोके बदल जानेका प्रत्यक्ष प्रमाण है ! इसलिए जिन प्रतिमासे विराग करनेकी कोई जरूरत नहीं । दृढ़ श्रद्धा रखकर यदि हम उनका आधार लेकर उन तीर्थंकर भगवानके दिव्यगुणोका चितवन करेंगे जो अपने ही सद्प्रयत्नोसे जगतपूज्य बन गए है तो अवश्य ही हमे जिनप्रतिमा पूजनसे पुण्यकी प्राप्ति होगी। इसमे संशय नहीं है। आज प्रत्यक्षमे अग्रेजोको देखिये, कोई भी उनको मूर्तिपूजक
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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