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[३] विशद चरित्र लिखा हुआ मिलता है। इन्हीं ग्रंथोंके आधारसे एवं
अन्य जैनेतर शास्त्रों और ऐतिहासिक साधनों द्वारा यह पुस्तक लिखी गई है । इसमें जो कुछ है वह सब पुरातन है; केवल इसका रूप-रंग और वेश-भूषा आधुनिक है। शायद किन्हीं लोगोंकी अब भी यह धारणा हो कि एक पौराणिक अथवा काल्प'निक पुरुषकी जीवनीमें ऐतिहासिकताकी झलक कहांसे आसक्ती है ? और इस मिथ्या धारणाके कारण वह हमारे इस प्रयासको अनावश्यक समझें! किन्तु उनकी यह धारणा सारहीन है। 'प्रभु पार्श्व कोई काल्पनिक व्यक्ति नहीं थे। पौराणिक बातोको -कोरा ठपाल बता देना भारी धृष्टता और नीच कृतघ्नतामे भरी हुई अश्रद्धा है । भारतीय पुराणलेखक गण्यमान्य ऋषि थे। उन्होंने कोरी कवि कल्पनाओंसे ही अपने पुराणग्रन्थोंको काळा नहीं किया है। जबकि वह उनको एक 'इतिहास' के रूपमै लिख रहे थे। वेशक हिदू पुराणोंमें ओतप्रोत अलंकार भरा हुआ मिलना है; परन्तु इसपर भी उनमें ऐतिहासिकताका अभाव नहीं है। तिसपर जैनपुराण तो अलंकारवादसे बहुत करके अछूते हैं और उनमें मौलिक घटनाओंका समावेश ही अधिक है। उनकी रचना स्वतन्त्र और यथार्थ है । किसी अन्य संप्रदायके शाखोंकी नकल कनेका आभास सहसा उनमें नहीं मिलता है । साथ ही वे बहुभाचीन भी हैं। मौर्यसम्राट चंद्रगुप्तके समयसे जैन वाड्मय नियमितरूपमें
१-पुगणमितिवृत्तमाख्यायिकोदाहरण धर्मशास्त्रमर्यशान चेतिहास.-योटिल्य । २-रेपनन, एन्शियेन्ट इन्डिया पृ०००। ३-जेनत्र 2.3. XXII. Intro-P. IX.