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________________ ८७ भगवान् महावीर - उज्जाणे" आदि शब्दों से मालूम होता है कि वह नाय कुल का ही था। उपरोक्त कथन से जैन शास्त्रों के उस कथन का समर्थन होता है। जिसमे "कुण्ड ग्राम" का "नायर" (नगर) की तरह उल्लेख किया गया है। क्योकि कुण्डग्राम वैशाली का ही दूसरा नाम था। कल्प सूत्र पृष्ट १००वें में कुण्ठपुर के साथ "नयरं-समितर वाहिरियं" इस प्रकार का विशेषण लगा हुआ है। इस वर्णन से माफ मालूम होता है कि, यह वैशाली का ही वर्णन है । जिस सूत्र के आधार पर कुण्डग्राम को सन्निवेश सिद्ध किया जाता है। वह वरावर ठीक नहीं है। इन सब बातो से यह पता चलता है कि महावीर के पिता "सिद्धार्थ" कुण्डग्राम अथवा वैशाली नामक शहर के "कोलभाग" नामक पुरे में बसने वाले नाय जाति के क्षत्रियो के मुख्य सरदार थे। इस बात का प्रमाण हमे जैन ग्रन्थो में भी कई स्थानो पर मिलता है। कल्पसूत्रादि प्राचीन ग्रन्थो मे "सिद्धार्थ" को "कुण्डग्राम" के राजा की तरह ने बहुत ही कम स्थानों में वर्णित किया है अधिक स्थानो पर उसे साधारण क्षत्रिय मरदार की तरह लिखा है। यदि कहीं कही एक दो स्थानों पर राजा की तरह से उसका उल्लेख भी पाया जाता है तो वह कंवल अपवाद रूप से । इन प्रमारणों से यह साफ जाहिर होता है कि "महावीर" को जन्मभूमि कोल्लांग ही थी और यही कारण है कि दीक्षा लेते ही वे सब से प्रथम अपनी जन्मभूमि के पास वाले दुईपलास नामक चैत्य में ही जा कर रहे, महावीर के माता पिता और दूसरे
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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