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भगवान महावीर
अनेक स्थल हैं पर उपरोक्तप्रमाणों में सत्य का बहुत अंशमालूम होता है। इस विषय पर हम विशेष मीमांसा न कर इसके निर्णय का भार जैन विद्वानों पर ही छोड़ देते हैं।
भगवान् महावीर की जन्मभूमि जैन शास्त्रों के अनुसार भगवान महावीर की जन्मभूमि "कुण्डग्राम" एक बड़ा शहर एवं स्वतंत्र राजधनी था। उसके गजा सिद्धार्थ एक बड़े नृपति थे। आजकल गया जिले के अन्तर्गत "लखवाई" नामक ग्राम जिस जगह पर बसा हुआ है वहां पर यह शहर स्थित था।
पर पश्चात् पुरातत्ववेताओं के मतानुसार “कुण्ड ग्राम" लिच्छवि वश की राजधानी वैशाली नगरी एक "पुरा" मात्र था और सिद्धार्थ वहां के जागीरदार थे। डा० हर्मन जेकोबी ने जैन-मृत्रों पर की प्रस्तावना में इस विपय की चर्चा की है। डाक्टर हार्नल ने भी अपने जैनधर्म सम्बन्धी विचारों मे इसका विवेचन किया है। कई जिज्ञासु पाठक अवश्य उन प्रमाणों को जानने के लिए लालायित होंगे। जिसके आधार पर पाश्चात्य विद्वानों ने इस कल्पना को ईजाद की है। अतएव हम नीचे ढा० हार्नल की लिखी हुई एक टिप्पणी का सारांश दे देना रचित सममते हैं।
"वाणियप्राम" लिच्छवि वंश की प्रसिद्ध राजधानी "वैशाली" नामक सुप्रसिद्ध शहर का दूसरा नाम है । कल्पसूत्र के १२२ वें पृष्ट में उसे वैशाली के समीपवर्ती एक भिन्न शहर की तरह माना है। लेकिन अनुसन्धान करने से यह मालूम होता