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________________ ( ४७४ ) आपको आशिर्वाद दिये और मङ्गलकामना के लिये ईश्वर से प्रार्थना की। इसी तरह इन्होने अजमेर की जनता की समय२ पर अनेक सेवाएं की थी किन्तु विस्तार भय से सवको छोड़ कर एक दो घटनाओ का ही उल्लेख दिग्दर्शनार्थ किया गया है। सेठ चाँदमल जी जैन थे किन्तु किसी धर्म से भी आपको द्वेष न था। सर्व धर्मों को आप इज्जत की निगाह से देखते थे, बुलाने पर सबके उत्सवो मे सम्मिलित होते थे और यथाशक्ति सब को देते भी थे। मेम्बर या पदाधिकारी बनने में भी आप एतराज न करते थे। दयावान राजपूताने भर में आप प्रसिद्ध थे। आनासागर तथा फाई सागर में मछलियों का पकड़ना बन्द करा दिया था। दोनो तलाबो का पानी सूख जाने पर इनकी मछलियाँ बूढ़े पुष्कर मे भिजवा दी जाती थी। आपकी तरफ से सदाव्रत जारी था। कच्ची वालो को सीधा और पक्की वालो को पुडी दी जाती थी, गरीब स्त्रीपुरुष और बच्चो कोरोजाना चना दिया जाता था, गायो को घास डलाया जाता था, कबूतर तोते आदि पक्षियों को अनाज छुड़ाया जाताथा, गरीब मुसलमान रोजे रखने वालों के लिये रोजा खोलने के लिये रोटी बनवा कर उनके पास भिजवायी जाती थी। कहने का अर्थ यह है कि बिना भेदभाव सवको दिया जाताथा यही सबब था कि कोई भी गरीव, अपाहिज स्टेशन से उतरते ही या रेल ही से चाँदमल जी का नाम रटता हुआ चला आताथा और वहाँ जाने पर उसके भाग्य अनुसार मिलता ही था कोई भी व्यक्ति बिना कुछ लिये उनके द्वार से न लौटता था हर समय १०-२०-५० का जमघट जमा ही रहता था, और उन सब को
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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