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( ४६९ ) सेठ हमीरमल ।
सेठ हमीरमल जो की इज्जत सिन्धिया के दरवार में बहुत थो, इनको बैठक दरवार में थी और अतर पान दिया जाता था । सम्वत् १९११ ( सन् १८५४ ) में सेठ हमीरमल को महाराज ! जोधपुर ने फिर सेठ की उपाधि प्रदान की जो सौ वर्ष पूर्व महाराजा विजय सिंह जी ने सेठ जोवरणदास जी को दी थी । इसके अतिरिक्त पालकी, खिल्लत और दर्बार में बैठक का मर्तबा दिया था जो राज्य के दिवानों को भी न दिया गया था। साथ ही महाराजा नाव ने प्रसन्न होकर निज के माल या सामान की चुगी विल्कुल न ली जाने तथा व्यापार के माल पर आधी चुंगी ली जाने को रियायत बखशी जो आज तक चली आती है ।
अग्रेज सरकार की भी संठ हमीरमल जी ने बड़ी सेवा की थी इससे उनका बड़ा मान और आदर सत्कार किया जाता था, सन् १८४६ में कर्नल सीमन एजन्ट गवर्नर जनरल बुन्देलखड और सागर ने पत्र व्यवहार में' "सेठ साहव महरवान सलामत वाद शोक मुलाकात के" का अलकाव आदाव व्यवहृत किये जाने की सूचना दी थी जिसको कर्नल जे० सी० ब्रुक कमिश्नर और एजेन्ट गवर्नर जनरल राजपूताना ने २० फरवरी सन् १८७१ को उसी अलाव आदाव की जारी रखने की स्वीकृति दी थी ।
सन् १९५२ और ५५ में जब सेठ हमीरमल अपने खजानों को देखभाल करने पन्जाब में गये उस समय फायिनेन्स कमिश्नर पंजाब, तथा कमिश्नर जालन्धर डिविजन ने तहसीलदारों के