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भगवान् महावीर (२) जैन-धर्म हिन्दू से सर्वथा स्वतंत्र है। उसकी शाखा या रूपान्तर नहीं है। मेक्समुलर का भी यही मत है।
(३) पार्श्वनाथ जी जैन-धर्म के आदि प्रचारक नहीं थे परन्तु इसका प्रथम प्रचार रिपभदेवजी ने किया था। इसकी पुष्टी के प्रमाणो का अभाव नहीं है।
(४) बौद्ध लोग महावीरजी को निर्ग्रन्थों अर्थात् जैनियों का नायक मात्र कहते हैं, स्थापक नहीं कहते । जर्मन डाक्टर जेकोबी का भी यही मत है।
(५) जैन-धर्म ज्ञान और भाव को लिए हुए है और मोक्ष भी इसी पर निर्भर है।
रा० रा. वासुदेव गोविन्द आपटे बी० ए० इन्दौर निवासी के व्याख्यान से कुछ वाक्य उद्धृत ।
(१) प्राचीन काल में जैनियो ने उत्कृष्ट पराक्रम वा राज्य * भार का परिचालन किया है। (२) जैन-धर्म मे अहिसा का तवं अत्यन्त श्रेष्ठ है। (३) जैन-धर्म मे यतिधर्म अत्यन्त उत्कृष्ट है इसमें सन्देह नहीं । (४) जैनियों मे स्त्रियो को भी यति दीक्षा लेकर परोपकारी कृत्यों में जन्म व्यतीत करने की आज्ञा है यह सर्वोत्कृष्ट है। (५) हमारे हाथ से जीव हिंसा
* प्राचीन काल में चक्रवर्ती, महामण्डलीक, मण्डलीक आदि बड़े २ पदाधिकारी जैन धर्मी हुए हैं। जैनियों के परम पूज्य २४ मों तीर्थंकर भी सूर्यवशी चन्द्रशी
आदि क्षत्रिय कुलोत्पन्न बड़े बड़े राज्याधिकारी हुए , जिसकी साक्षी जैनग्रथों सगा किमी २ अजेन शाखों व इतिहास ग्रन्थों में भी मिलती है।