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भगवान् महावीर
न्टेज विद्रोह के हजारो और लाखों दृश्य न्यायालयों के रङ्ग मञ्चों पर अमिनीत होते हैं। ब्रह्मचर्य के अभाव के कारण संसार में अनाचार, व्यभिचार और वलहीनता के दृश्य देखने को मिलते है, और सादगी के विरुद्ध विलासप्रियता के आधिक्य ही के कारण नाना प्रकार के विलास मन्दिरों में मनुष्य जाति का अधःपात होता है।
यद्यपि यह वात निर्विवाद है कि लाख प्रयत्न करने पर भी मनुष्य जाति की ये कमजोरियाँ विल्कुल नष्ट नहीं हो सकती तथापि यह निश्चय है कि इन सिद्धान्तों के प्रचार से मनुष्य जाति के अन्तर्गत बहुत साम्यता स्थापित हो मकती है। जितना ही ज्यादा समाज में इन सिद्धान्तो का प्रचार होता जायगा, उतनी ही समाज की शान्ति बढ़ती जायगी। इस दृष्टि से इस कसोटी पर यदि जाँचा जाय तव तो जैन-धर्म के विश्वव्यापित्र मे कोई सन्देह नहीं रह सकता।
अव रही व्यक्ति के आत्मिक उद्धार की वात। इस विषय मे तो जैन-धर्म पूर्णता को पहुँचा हुआ है। आत्मिक उद्धार के अनेक व्यवहारिक सिद्धान्त इसमें पाये जाते हैं । खयं बुद्धदेव ने जैनियों के तपस्या सम्बन्धी इस बात को बहुत पसन्द किया था। "मज्झिमनिकाय" नामक बौद्ध ग्रन्थ में एक स्थान पर बुद्धदेव कहते हैं :
"हे महानाम! मैं एक समय राजगृह नगर मे गृद्धकूट नामक पर्वत पर विहार कर रहा था। उसी समय ऋषिगिरि के समीप कालशिला पर बहुत से निग्रन्थ मुनि आसन छोड़ कर उपक्रम कर रहे थे वे लोग तीन तपस्या में प्रवृत्ति थे। मैं सास